Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ तृतीय अध्ययन : चुलनोपिता] [107 भगवान् महावीर पधारे-समवसरण हुआ / भगवान् की धर्म-देशना सुनने परिषद् जुड़ी। आनन्द की तरह चुलनीपिता भी घर से निकला भगवान् की सेवा में पाया / आनन्द को तरह उसने भी श्रावकधर्म स्वीकार किया। ____ गौतम ने जैसे प्रानन्द के सम्बन्ध में भगवान् से प्रश्न किए थे, उसी प्रकार चुलनीपिता के भावी जीवन के सम्बन्ध में भी किए / भगवान् ने समाधान दिया। ___आगे की घटना गाथापति कामदेव की तरह है। चुलनीपिता पोषधशाला में ब्रह्मचर्य एवं पोषध स्वीकार कर, श्रमण भगवान् महावीर के पास अंगीकृत धर्म-प्रज्ञप्ति-धर्म-शिक्षा के अनुरूप उपासना-रत हुआ। उपसर्गकारी देव : प्रादुर्भाव 126. तए णं तस्स चुलणीपियस्स समणोवासयस्स पुव्व-रत्तावरत्तकाल-समयंसि एगे देवे अंतियं पाउन्भूए। आधी रात के समय श्रमणोपासक चुलनीपिता के समक्ष एक देव प्रकट हुआ। पुत्र-वध की धमकी 127. तए णं से देवे एगं महं नीलुप्पल जाव' असि गहाय चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी-हं भो चुलणीपिया ! समणोवासया! जहा कामदेवो जाव' न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जेटुं पुत्तं साओ गिहाओ नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि धाएता तओ मंस-सोल्ले करेमि, करेत्ता आदाण-भरियंसि कडाहयंसि अद्दहेमि अद्दहेत्ता तब गायं मंसेण य सोणिएण य आयंचामि, जहा णं तुम अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि। उस देव ने एक बड़ी नीली तेज धार वाली तलवार निकाल कर जैसे पिशाच रूप धारी देव ने कामदेव से कहा था, वैसे ही श्रमणोपासक चुलनीपिता को कहा-श्रमणोपासक चुलनीपिता ! व्रतों से हट जाओ। यदि तुम अपने व्रत नहीं तोड़ोगे, तो मैं आज तुम्हारे बड़े पुत्र को घर से निकाल लाऊंगा। निकाल कर तम्हारे पागे उसे मार डालगा। मारकर उसके तीन मांस-खंड करूगा. उबलते पाद्रहण-पानी या तैल से भरी कढ़ाही में खौलाऊंगा। उसके मांस और रक्त से तुम्हारे शरीर को सींचंगा-छोटूगा / जिससे तुम आर्तध्यान एवं विकट दुःख से पीड़ित होकर असमय में ही प्राणों से हाथ धो बैठोगे। चलनोपिता की निर्भीकता 128. तए णं से चुलणीपिया समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ। 1. देखें सूत्र-संख्या 116 2. देखें सूत्र-संख्या 107 3. देखें सूत्र-संख्या 98 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org