Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ प्रथम अध्ययन : गाथापति आनन्द] विषवाणिज्य-तरह-तरह के विषों का व्यापार / तलवार, छुरा, कटार, बन्दूक, धनुष, बाण, बारूद, पटाखे आदि हिंसक व घातक वस्तुओं का व्यापार भी विषवाणिज्य के अन्तर्गत, लिया जाता है। केशवाणिज्य-यहाँ प्रयुक्त केश शब्द लाक्षणिक है। केश-वाणिज्य का अर्थ दास, दासी, गाय, भैंस, बकरी, भेड़, ऊँट घोड़े आदि जीवित प्राणियों की खरीद-बिक्री प्रादि का धन्धा है। कुछ प्राचार्यों ने चमरी गाय की पूछ के बालों के व्यापार को भी इसमें शामिल किया है / इनके चंवर बनते हैं / मोर-पंख तथा ऊन का धन्धा केश-वाणिज्य में नहीं लिया जाता / चमरी गाय के बाल प्राप्त करने तथा मोर-पंख प्राप्त करने में खास भेद यह है कि बालों के लिए चमरी गाय को मारा जाता है, ऐसा किये बिना वे प्राप्त नहीं होते। मोर-पंख व ऊन प्राप्त करने में ऐसा नहीं है / मारे जाने के कारण को लेकर चमरी गाय के बालों का व्यापार इसमें लिया गया है। ___ यंत्रपीडनकर्म-तिल, सरसों, तारामीरा, तोरिया, मूगफली आदि तिलहनों से कोल्हू या घाणी द्वारा तैल निकालने का व्यवसाय / निलांछनकर्म बैल, भैसे आदि को नपुसक बनाने का व्यवसाय / दवाग्निदापन-वन में आग लगाने का धन्धा / यह प्राग अत्यन्त भयानक और अनियंत्रित होती है / उससे जंगल के अनेक जंगम-स्थावर प्राणियों का भीषण संहार होता है / सरहदतडागशोषण-सरोवर, झील, तालाब आदि जल-स्थानों को सुखाना। असती-जन-पोषण-व्यभिचार के लिए वेश्या आदि का पोषण करना, उन्हें नियुक्त करना / श्रावक के लिए वास्तव में निन्दनीय कार्य है। इससे समाज में दुश्चरित्रता फैलती है, व्यभिचार को बल मिलता है। आखेट हेतु शिकारी कुत्ते आदि पालना, चूहों के लिए बिल्लियाँ पालना--ये सब भी असतीजन-पोषण के अन्तर्गत आते हैं। अनर्थदण्ड-विरमण के अतिचार 52. तयाणंतरं च णं अणदुदंडवेरमणस्स समणोवासएणं पंच अइयारा जाणियन्वा, न समायरियव्वा, तंजहा–कंदप्पे, कुक्कुटूए, मोहरिए, संजुत्ताहिगरणे, उवभोगपरिभोगाइरित्ते।। उसके बाद श्रमणोपासक को अनर्थदंड-विरमण व्रत के पांच अतिचारों को जानना चाहिए, उनका आचरण नहीं करना चाहिए। वे इस प्रकार हैं कन्दर्प, कौत्कुच्य, मौखर्य, संयुक्ताधिकरण तथा उपभोगपरिभोगातिरेक / विवेचन कन्दर्प-काम-वासना को भड़काने वाली चेष्टाएँ करना। कौत्कुच्य–बहुरूपियों की तरह भद्दी व विकृत चेष्टाएँ करना / मौखर्य--निरर्थक डींगें हांकना, व्यर्थ बातें बनाना, बकवास करना / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org