Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ प्रथम अध्ययन : गाथापति आनन्द [61 61. तए णं सा सिवनंदा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठ जाव' गिहिधम्म पडिवज्जइ, पडिवज्जिता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ दुरुहित्ता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया / तब शिवनन्दा श्रमण भगवान महावीर से धर्म सुनकर तथा उसे हृदय में धारण करके अत्यन्त प्रसन्न हुई / उसने गहि-धर्म--श्रावकधर्म स्वीकार किया, स्वीकार कर वह उसी धार्मिक उत्तम रथ पर सवार हुई, सवार होकर जिस दिशा से आई थी, उसी दिशा की ओर चली गई / आनन्द का भविष्य 62. भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-पहू णं भंते ! आणंदे समणोवासए देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे जाव' पन्वइत्तए? ___ नो तिण? सम?, गोयमा ! आणंदे णं समणोवासए बहूई वासाई समणोवासगपरियायं पाउणिहिइ, पाउणित्ता जाव (एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्मं कारणं फासित्ता मासियाए संलेहगाए अत्ताणं झूसित्ता, सर्द्धि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता, आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा) सोहम्मे कप्पे अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववन्जिहि / तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता, तत्थ णं आणंदस्स वि समणोवासगस्स चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णता। गौतम ने भगवान् महावीर को वन्दन-नमस्कार किया और पूछा-भन्ते ! क्या श्रमणोपासक आनन्द देवानुप्रिय के-आपके पास मुडित एवं परिवजित होने में समर्थ है ? भगवान् ने कहा- गौतम ! ऐसा संभव नहीं है / श्रमणोपासक आनन्द बहुत वर्षों तक श्रमणोपासक-पर्याय--- श्रावक-धर्म का पालन करेगा [उपासक की ग्यारह प्रतिमाओं का भली-भांति स्पर्श-अनुपालन करेगा, अन्ततः एक मास की संलेखना एवं साठ भोजन का---एक मास का अनशन पाराधित कर आलोचना प्रतिक्रमण-ज्ञात-अज्ञात रूप में प्राचरित दोषों की आलोचना कर समाधिपूर्वक यथासमय देह-त्याग करेगा।] वह सौधर्म-कल्प में-सौधर्म नामक देवलोक में अरुणाभ नामक विमान में देव के रूप में उत्पन्न होगा। वहां अनेक देवों की आयु-स्थिति चार पल्योपम काल का परिमाण विशेष] की होती है / श्रमणोपासक आनन्द की भी पायु-स्थिति चार पल्योपम की होगी। विवेचन यहाँ प्रयुक्त 'पल्योपम' शब्द एक विशेष, अति दीर्घ काल का द्योतक है / जैन वाङमय में इसका बहुलता से प्रयोग हुआ है / प्रस्तुत प्रागम में प्रत्येक अध्ययन में श्रावकों की स्वर्गिक कालस्थिति का सूचन करने के लिए इसका प्रयोग हुआ है। पल्य या पल्ल का अर्थ कुत्रा या अनाज का बहुत बड़ा कोठा है। उसके आधार पर या उसकी उपमा से काल-गणना की जाने के कारण यह कालावधि 'पल्योपम' कही जाती है। 1. देखें सूत्र-संख्या 12 / 2. देखें सूत्र– संख्या 12 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org