Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ [उपासकदशांगसूत्र तुच्छ-अोषधि-भक्षणता-जिन वनौषधियों या फलों में खाने योग्य भाग कम हो, निरर्थक या फेंकने योग्य भाग अधिक हो, जैसे गन्ना, सीताफल आदि, इनका सेवन करना / इसका दूसरा अर्थ यह भी है, जिनके खाने में अधिक हिंसा होती हो, जैसे खस-खस के दाने, शामक के दाने, चौलाई आदि का सेवन / इन अतिचारों की परिकल्पना के पीछे यही भावना है कि उपासक भोजन के सन्दर्भ में बहुत जागरूक रहे / जिह्वा-लोलुपता से सदा बचा रहे। जिह्वा के स्वाद को जीतना बड़ा कठिन है, इसीलिए उस ओर उपासक को बहुत सावधान रहना चाहिए। कर्मादान-कर्म और आदान, इस दो शब्दों से 'कर्मादान' बना है। आदान का अर्थ ग्रहण है / कर्मादान का आशय उन प्रवृत्तियों से है, जिनके कारण ज्ञानाबरण आदि कर्मों का प्रबल बन्ध होता है / उन कामों में बहुत अधिक हिंसा होती है। इसलिए श्रावक के लिए वे वर्जित हैं / ये कर्म सम्बन्धी अतिचार हैं / श्रावक को इनके त्याग की स्थान-स्थान पर प्रेरणा दी गई है / कहा गया है कि न वह स्वयं इन्हें करे, न दूसरों से कराए और न करने वालों का समर्थन करे / कर्मादानों का विश्लेषण इस प्रकार है-- __ अंगार-कर्म-अंगार का अर्थ कोयला है। अंगार-कर्म का मुख्य अर्थ कोयले बनाने का धंधा करना है। जिन कामों में अग्नि और कोयलों का बहुत ज्यादा उपयोग हो, वे काम भी इसमें आते हैं / जैसे--ईटों का भट्टा, चूने का भट्टा, सीमेंट का कारखाना आदि / इन कार्यों में घोर हिंसा होती है। वन-कर्म-वे धन्धे. जिनका सम्बन्ध वन के साथ है. वन-कर्म में आते हैं: जैसे--कटवा कर कराना. जंगल के वक्षों को काट कर लकडियाँ बेचना, जंगल काटने के ठेके लेना आदि / हरी वनस्पति के छेदन भेदन तथा तत्सम्बद्ध प्राणि-बध की दृष्टि से ये भी अत्यन्त हिंसा के कार्य हैं / आजीविका के लिए वन-उत्पादन-संवर्धन करके वृक्षों को काटना-कटवाना भी वन-कर्म हैं। शकट-कर्म-शकट का अर्थ गाड़ी है। यहाँ गाड़ी से तात्पर्य सवारी या माल ढोने के सभी तरह के वाहनों से है। ऐसे वाहनों को, उनके भागों या कल-पुर्जो को तैयार करना, बेचना आदि शकट-कर्म में शामिल है / आज की स्थिति में रेल, मोटर, स्कूटर, साइकिल, ट्रक, ट्रैक्टर आदि बनाने के कारखाने भी इसमें आ जाते हैं। भाटीकर्म भाटी का अर्थ भाड़ा है / बैल, घोड़ा, ऊँट, भैसा, खच्चर आदि को भाड़े पर देने का व्यापार। स्फोटनकर्म-स्फोटन का अर्थ फोड़ना, तोड़ना या खोदना है। खाने खोदने, पत्थर फोड़ने, कुए, तालाब तथा बावड़ी आदि खोदने का धन्धा स्फोटन-कर्म में आते हैं। दन्तवाणिज्य हाथी दांत का व्यापार इसका मुख्य अर्थ है। वैसे हड्डी, चमड़े आदि का व्यापार भी उपलक्षण से यहाँ ग्रहण कर लिया जाना चाहिए। लाक्षावाणिज्य-लाख का व्यापार / रसवाणिज्य-मदिरा आदि मादक रसों का व्यापार / वैसे रस शब्द सामान्यतः ईख एवं फलों के रस के लिए भी प्रयुक्त होता है, किन्तु यहाँ वह अर्थ नहीं है। .. शहद, मांस, चर्बी, मक्खन, दूध, दही, घी, तैल आदि के व्यापार को भी कई प्राचार्यों ने रसवाणिज्य में ग्रहण किया है। Jain Education International.. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org