Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 32] [उपासकदशांगसूत्र शतपाक तथा सहस्रपाक तैलों के अतिरिक्त मैं और सभी अभ्यंगनविधि--मालिश के तैलों का परित्याग करता हूं। विवेचन शतपाक या सहस्रपाक तैल कोई विशिष्ट मूल्यवान् तैल रहे होंगे, जिनमें बहुमूल्य औषधियां पड़ी हों / प्राचार्य अभयदेव सूरि द्वारा वृत्ति में इस संबंध में किए गए संकेत के अनुसार शतपाक तैल रहा हो, जिसमें 100 प्रकार के द्रव्य पड़े हों, जो सौ दफा पकाया गया हो अथवा जिसका मूल्य सौ कार्षापण रहा हो / कार्षापण प्राचीन भारत में प्रयुक्त एक सिक्का था / वह सोना, चांदी व तांबा-इनका अलग-अलग तीन प्रकार का होता था। प्रयुक्त धातु के अनुसार वह स्वर्ण-कार्षापण रजत-कापिण या ताम्र-कार्षापण कहा जाता रहा था। स्वर्ण-कार्षापण का वजन 16 मासे, रजतकार्षापण का वजन 16 पण [तोल विशेष] और ताम्र-कार्षापण का वजन 80 रत्ती होता था।' __ सौ के स्थान पर जहाँ यह क्रम सहस्र में आ जाता है, वहाँ वह तैल सहस्रपाक कहा जाता है। 26. तयाणंतरं च णं उबट्टणविहिपरिमाणं करेइ / नन्नत्थ एकेणं सुरहिणा गंघट्टएणं, अवसेसं उच्चट्टणविहिं पच्चक्खामि / इसके बाद उसने उबटन-विधि का परिमाण किया एक मात्र सुगन्धित गंधाटक---गेहूँ आदि के आटे के साथ कतिपय सौगन्धिक पदार्थों को मिला कर तैयार की गई पीठी के अतिरिक्त अन्य सभी उबटनों का मैं परित्याग करता हूं। 27. तयाणंतरं च णं मज्जणविहिपरिमाणं करेइ। नन्नत्य अहिं उट्टिएहि उदगस्स घहिं अवसेसं मज्जणविहिं पच्चक्खामि / उसके बाद उसने स्नान-विधि का परिमाण किया -पानी के आठ औष्ट्रिक-ऊंट के आकार के घड़े, जिनका मुह ऊंट की तरह संकड़ा, गर्दन लम्बी और आकार बड़ा हो, के अतिरिक्त स्नानार्थ जल का परित्याग करता हूं। 28. तयाणंतरं च णं वयविहिपरिमाणं करेइ / नन्नत्थ एगेणं खोम-जुयलेणं, अवसेसं वत्थविहि पच्चक्खामि / तब उसने वस्त्रविधि का परिमाण कियासूती दो वस्त्रों के सिवाय मैं अन्य वस्त्रों का परित्याग करता हूं। 29. तयाणंतरं च णं विलेवविहिपरिमाणं करेइ। नन्नत्य अगर-कुकुम-चंदणमादिहि अवसेसं विलेवणविहिं पच्चक्खामि / __ तब उसने विलेपन-विधि का परिमाण किया-- 1. संस्कृत-इंगलिश डिक्शनरी–सर मोनियर विलियम्स, पृ. 176 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org