Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 42] [उपासकदशांगसूत्र सहसा अभ्याख्यान-सहसा का अर्थ एकाएक है। जब कोई बात बिना सोचे-विचारे भावुकतावश झट से कही जाती है, वहाँ इस शब्द का प्रयोग होता है / ऐसा करने में विवेक के बजाय भावावेश अधिक काम करता है / सहसा अभ्याख्यान का अर्थ है किसी पर एकाएक बिना सोचे-विचारे दाषारोपण करना / यदि यह दोषारोपण दुर्भावना, विचार और संक्लेशपूर्वक होता है तो अतिचार नहीं रहता, अनाचार हो जाता है / वहाँ उपासक का व्रत भग्न हो जाता है / सहसा बिना विचारे ऐसा करने में कुछ हलकापन है / पर, उपासक को रोष या भावावेशवश भी इस प्रकार किसी पर दोषारोपण नहीं करना चाहिए / इससे व्रत में दुर्बलता या शिथिलता आती है / रहस्य-अभ्याख्यान-रहस् का अर्थ एकान्त है। उसी से रहस्य शब्द बना है, जिसका भाव एकान्त की बात या गुप्त बात है। रहस्य-अभ्याख्यान का अभिप्राय किसी गुप्त बात को अचानक प्रकट कर देना है / उपासक के लिए यह करणीय नहीं है। ऐसा करने से उसके व्रत में शिथिलता आती है / रहस्य-अभ्याख्यान का एक और अर्थ भी किया जाता है, तदनुसार किसी पर रहस्य-गुप्त रूप में षड्यंत्र आदि करने का दोषारोपण इसका तात्पर्य है / जैसे कुछ व्यक्ति एकान्त में बैठे अापस में बातचीत कर रहे हों। कोई मन में सशंक होकर एकाएक उन पर आरोप लगा दे कि वे अमुक षड्यन्त्र र रहे हैं। इसका भी इस अतिचार में समावेश है। यहाँ भी यह ध्यान देने योग्य है कि जब तक सहसा, अचानक या बिना विचारे ऐसा किया जाता है तभी तक यह अतिचार है / यदि मन में दुर्भावनापूर्वक सोच-विचार के साथ ऐसा आरोप लगाया जाता है तो वह अनाचार हो जाता है, व्रत खंडित हो जाता है। ___ स्वदारमंत्रभेद-वैयक्तिकता, पारिवारिकता तथा सामाजिकता की दृष्टि से व्यक्ति के संबंध एवं पारस्परिक बातें भिन्नता लिए रहती हैं / कुछ बातें ऐसी होती हैं, जो दो ही व्यक्तियों तक सीमित रहती हैं ; कुछ ऐसी होती हैं, जो सारे समाज में प्रसारित की जा सकती हैं। वैयक्तिक संबंधों में पति संबंध सबसे अधिक घनिष्ठ। उनकी अपनी गप्त मंत्रणाएं, विचारणाएं आदि भी होती हैं / यदि पति अपनी पत्नी की ऐसी किसी गुप्त बात को, जो प्रकटनीय नहीं है, प्रकट कर दे तो वह स्वदार-मंत्र-भेद अतिचार में आता है। व्यावहारिक दृष्टि से भी ऐसा करना उचित नहीं है। जिसकी बात प्रकट की जाती है, अपनी गोपनीयता को उद्घाटित जान उसे दुःख होता है, अथवा अपनी दुर्बलता को प्रकटित जान उसे लज्जित होना पड़ता है / मृषोपदेश -झूठी राय देना या झूठा उपदेश देना मृषोपदेश में आता है। इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-एक ऐसी बात जिसकी सत्यता, असत्यता, हितकरता, अहितकरता आदि के विषय में व्यक्ति को स्वयं ज्ञान नहीं है, पर वह है वास्तव में असत्य। उसकी वह दूसरों को राय देता है, वैसा करने का उपदेश देता है, यह इस अतिचार में आता है। एक ऐसा व्यक्ति है, जो किसी बात की असत्यता या हानिप्रदता जानता है, पर उसके बावजूद वह औरों को वैसा करने की प्रेरणा करता है, उपदेश देता है तो यह अनाचार है। इसमें व्रत भग्न हो जाता है। क्योंकि वहाँ प्रेरणा या उपदेश करने वाले की नीयत सर्वथा अशुद्ध है / एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें एक व्यक्ति किसी असत्य या अहितकर बात को भी सत्य या हितकर मानता है। हित-बुद्धि से दूसरे को उधर प्रवृत्त करता है। बात तो वस्तुतः असत्य है, पर उस व्यक्ति की नीयत अशुद्ध नहीं है, इसलिए यह दोष अतिचार या अनाचार कोटि में नहीं पाता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org