Book Title: Agam 06 Gnatadharm Katha Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 26
________________ आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा' श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक पर, नागपूजा आदि के अवसर पर तथा कार्तिकी पूर्णिमा आदि पर्वो के अवसर पर हमें अन्तिम दर्शन रूप होगा। तात्पर्य यह है कि इन केशों का दर्शन, केशरहित मेघकुमार का दर्शन रूप होगा। इस प्रकार कहकर धारिणी ने वह पेटी अपने सिरहाने के नीचे रख ली। तत्पश्चात् मेघकुमार के माता-पिताने उत्तराभिमुख सिंहासन रखवाया । फिर मेघकुमार को दो-तीन बार श्वेत और पीत अर्थात् चाँदी और सोने के कलशों से नहलाया । नहलाकर रोएंदार और अत्यन्त कोमल गंधकाषाय वस्त्र से उसके अंग पोंछे । पोंछकर सरस गोशीर्ष चन्दन से शरीर पर विलेपन किया । विलेपन करके नासिका के निःश्वास की वायु से भी उड़ने योग्य-अति बारीक तथा हंस-लक्षण वाला वस्त्र पहनाया । पहनाकर अठारह लड़ों का हार पहनाया, नौ लड़ों का अर्द्धहार पहनाया, फिर एकावली, मुक्तावली, कनकावली, रत्नावली, प्रालंब, पादप्रलम्ब, कड़े, तुटिक, केयूर, अंगद, दसों उंगलियों में दस मुद्रिकाएं, कंदोरा, कुंडल, चूडामणि तथा रत्नजटित मुकूट पहनाए । यह सब अलंकार पहनाकर पुष्पमाला पहनाई । फिर दर्दर में पकाए हुए चन्दन के सुगन्धित तेल की गंध शरीर पर लगाई । तत्पश्चात् मेघकुमार को सूत से गूंथी हुई, पुष्प आदि से बेढ़ी हुई, बाँस की सलाई आकि से पूरित की गई तथा वस्तु के योग से परस्पर संघात रूप की हई-इस तरह चार प्रकार की पुष्पमालाओं से कल्पवृक्ष के समान अलंकृत और विभूषित किया। तत्पश्चात् राजा श्रेणिक ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा-देवानुप्रिय ! तुम शीघ्र ही एक शिबिका तैयार करो जो अनेक-सैकड़ों स्तम्भों से बनी हो, जिसमें क्रीड़ा करती हुई पुतलियाँ बनी हों, ईहामृग, वृषभ, तुरगघोड़ा, नर, मगर, विहग, सर्प, किन्नर, रुरु, सरभ, चरमरी गाय, कुञ्जर, वनलता और पद्मलता आदि के चित्रों की रचना से युक्त हो, जिससे घंटियों के समूह से मधुर और मनोहर शब्द हो रहे हों, जो शुभ, मनोहर और दर्शनीय हो, जो कुशल कारीगरों द्वारा निर्मित देदीप्यमान मणियों और रत्नों की घुघरूओं के समूह से व्याप्त हो, स्तम्भ पर बनी हुई वेदिका से युक्त होने के कारण जो मनोहर दिखाई देती हो, जो चित्रित विद्याधर-युगलों से शोभित हो, चित्रित सूर्य की हजार किरणों से शोभित हो, इस प्रकार हजारों रूपोंवाली, देदीप्यमान, अतिशय देदीप्यमान, जिसे देखते नेत्रों की तृप्ति न हो, जो सुखद स्पर्शवाली हो, सश्रीक स्वरूपवाली हो, शीघ्र त्वरित चपल और अतिशय चपल हो, और जो १००० पुरुषों द्वारा वहन की जाती हो । वे कौटुम्बिक पुरुष हृष्ट-तुष्ट होकर शिबिका उपस्थित करते हैं। तत्पश्चात् मेघकुमार शिबिका पर आरूढ़ हुआ, सिंहासन के पास पहुँचकर पूर्वदिशा की ओर मुख करके बैठ गया। तत्पश्चात् जो स्नान कर चुकी है, बलिकर्म कर चुकी है यावत् अल्प और बहुमूल्य आभरणों से शरीर को अलंकृत कर चूकी है, ऐसी मेघकुमार की माता उस शिबिका पर आरूढ़ हुई । आरूढ़ होकर मेघकुमार के दाहिने पार्श्व में भद्रासन पर बैठी । तत्पश्चात् मेघकुमार की धायमाता रजोहरण और पात्र लेकर शिबिका पर आरूढ़ होकर मेघकुमार के बाएं पार्श्व में भद्रासन पर बैठ गई । मेघकुमार के पीछे शृंगार के आगार रूप, मनोहर केषवाली, सुन्दर गति, हास्य, वचन, चेष्टा, विलाक, संलाप, उल्लाप करने में कुशल, योग्य उपचार करने में कुशल, परस्पर मिले हुए, समश्रेणी में स्थित, गोल, ऊंचे, पुष्ट, प्रीतिजनक और उत्तम आकार के स्तनों वाली एक उत्तम तरुणी, हिम, चाँदी, कुन्दपुष्प और चन्द्रमा के समान प्रकाश वाले, कोरंट के पुष्पों की माला से युक्त धवल छत्र को हाथों में थामकर लीलापूर्वक खड़ी हुई। तत्पश्चात् मेघकुमार के समीप शृंगार के आगार के समान, सुन्दर वेषवाली, यावत् उचित उपचारमें कुशल श्रेष्ठ तरुणियों शिबिका पर आरूढ़ हुई । आरूढ़ होकर मेघकुमार के दोनों पार्यों में, विविध प्रकार के मणि सुवर्ण रत्न और महान जनों के योग्य, अथवा बहुमूल्य तपनीयमय उज्ज्वल एवं विचित्र दंडीवाले, चमचमाते हुए, पतले उत्तम और लम्बे बालोंवाले, शंख गन्धपुष्प जलकण रजत एवं मंथन किये हुए अमृत फेन के समूह सरीखे दो चामर धारण करके लीलापूर्वक वींजती-वींजती हुई खड़ी हुई । तत्पश्चात् मेघकुमार के समीप शृंगार के आगार रूप यावत् उचित उपचार करने में कुशल एक उत्तम तरुणी यावत् शिबिका पर आरूढ़ हुई । आरूढ़ होकर मेघकुमार के पास पूर्व दिशा के सन्मुख चन्द्रकान्त मणि वज्ररत्न और वैडूर्यमय निर्मल दंडी वाले पंखे को ग्रहण करके खड़ी हुई । मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 26

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