Book Title: Agam 06 Gnatadharm Katha Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 134
________________ आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा' श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक वह दारुक सारथि पद्मनाभ राजा के द्वारा असत्कृत हुआ, यावत् पीछले द्वार से नीकाल दिया गया, तब कृष्ण वासुदेव के पास पहुँचा । दोनों हाथ जोड़कर कृष्ण वासुदेव से यावत् बोला-'स्वामिन् ! मैं आपके वचन से राजा पद्मनाभ के पास गया था, इत्यादि पूर्ववत; यावत् उसने मुझे पीछले द्वार से नीकाल दिया ।' कृष्ण वासुदेव के दूत को नीकलवा देने के पश्चात् इधर पद्मनाभ राजा ने सेनापति को बुलाया और उससे कहा-'देवानुप्रिय ! अभिषेक किए हुए हस्तिरत्न को तैयार करके लाओ।' यह आदेश सूनकर कुशल आचार्य के उपदेश से उत्पन्न हुई बुद्धि की कल्पना के विकल्पों से निपुण पुरुषों ने अभिषेक किया हुआ हस्ति उपस्थित किया । वह उज्ज्वल वेष से परिवृत्त था, सुसज्जित था । पद्मनाभ राजा कवच आदि धारण करके सज्जित हुआ, यावत् अभिषेक किये पर सवार हआ । सवार होकर अश्नों. हाथियों आदि की चतरंगिणी सेना के साथ वहाँ जाने को उद्यत हआ जहाँ वासुदेव कृष्ण थे। तत्पश्चात् वासुदेव ने पद्मनाभ राजा को आता देखा । वह पाँचों पाण्डवों से बोले-'अरे बालकों ! तुम पद्मनाभ के साथ युद्ध करोगे या युद्ध देखोगे ?' तब पाँच पाण्डवों ने कृष्ण वासुदेव से कहा-'स्वामिन् ! हम युद्ध करेंगे और आप हमारा युद्ध देखिए । तत्पश्चात् पाँचों पाण्डव तैयार होकर यावत् शस्त्र लेकर रथ पर सवार हुए और जहाँ पद्मनाभ था, वहाँ पहुँचे । 'आज हम हैं या पद्मनाभ राजा है ।' ऐसा कहकर वे युद्ध करने में जुट गए । तत्पश्चात् पद्मनाभ राजा ने उन पाँचों पाण्डवों पर शीघ्र ही शस्त्र से प्रहार किया, उनके अहंकार को मथ डाला और उनकी उत्तम चिह्न से चिह्नित पताका गिरा दी । मुश्किल से उनके प्राणों की रक्षा हुई । उसने उन्हें इधर-उधर भगा दिया । तब वे पाँचों पाण्डव पद्मनाभ राजा द्वारा शस्त्र से आहत, मथित अहंकार वाले और पतित पताका वाले होकर यावत् पद्मनाभ के द्वारा भगाए हुए, शत्रुसेना का निराकरण करने में असमर्थ होकर, वासुदेव कृष्ण के पास आए । तब वासुदेव कृष्ण ने पाँचों पाण्डवों से कहा-'देवानुप्रियो ! तुम लोग पद्मनाभ राजा के साथ किस प्रकार से युद्ध में संलग्न हुए थे ?' तब पाँचों पाण्डवों ने कृष्ण वासुदेव से इस प्रकार कहा-'देवानुप्रिय ! हम आपकी आज्ञा पाकर सुसज्जित होकर रथ पर आरूढ़ हुए | आरूढ़ होकर पद्मनाभ के सामने गये; इत्यादि सब पूर्ववत् यावत् उसने हमें भगा दिया। पाण्डवों का उत्तर सूनकर कृष्ण वासुदेव ने पाँचों पाण्डवों से कहा-देवानुप्रियो ! अगर तुम ऐसा बोले होते कि हम हैं, पद्मनाभ राजा नहीं और ऐसा कहकर पद्मनाभ के साथ युद्ध में जूटते तो पद्मनाभ राजा तुम्हारा हनन नहीं कर सकता था । हे देवानुप्रियो ! अब तुम देखना । 'मै हूँ, पद्मनाभ राजा नहीं इस प्रकार कहकर मैं पद्मनाभ के साथ युद्ध करता हूँ। इसके बाद कृष्ण वासुदेव रथ पर आरूढ़ हुए । पद्मनाभ राजा के पास पहुँचे । उन्होंने श्वेत, गाय के दूध और मोतियों के हार के समान उज्ज्वल, मल्लिका के फूल, मालती-कुसुम, सिन्दुवार-पुष्प, कुन्दपुष्प और चन्द्रमा के समान श्वेत, अपनी सेना को हर्ष उत्पन्न करने वाला पाञ्चजन्य शंख हाथ में लिया और मुख की वायु से उसे पूर्ण किया । उस शंख के शब्द से पद्मनाभ की सेना का तिहाई भाग हत हो गया, यावत् दिशा-दिशा में भाग गया । उसके बाद कृष्ण वासुदेव ने सारंग नामक धनुष हाथ में लिया । धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई। टंकार की । तब पद्मनाभ की सेना का दूसरा तिहाई भाग उस धनुष की टंकार से हत-मथित हो गया यावत् इधर-उधर भाग छूटा । तब पद्मनाभ की सेना का एक तिहाई भाग ही शेष रह गया । अत एव पद्मनाभ सामर्थ्यहीन, बलहीन, वीर्य हीन और पुरुषार्थ-पराक्रम से हीन हो गया । वह कृष्ण के प्रहार को सहन करने या निवारण करने में असमर्थ होकर शीघ्रतापूर्वक, त्वरा के साथ, अमरकंका राजधानी में जा घूसा । उसने अमरकंका राजधानी के द्वार बन्द करके वह नगररोध के लिए सज्ज होकर स्थित हो गया। तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव जहाँ अमरकंका राजधानी थी, वहाँ गए । रथ ठहराया । नीचे ऊतरे । वैक्रियसमुद्घात से समवहत हुए । समुद्घात करके उन्होंने एक महान् नरसिंह का रूप धारण किया । फिर जोर-जोर के शब्द करके पैरों का आस्फालन किया । कृष्ण वासुदेव के जोर-जोर की गर्जना के साथ पैर पछाड़ने से अमरकंका राजधानी के प्रकार गोपुर अट्टालिका चरिका और तोरण गिर गए और श्रेष्ठ महल तथा श्रीगृह चारों ओर से तहस मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 134

Loading...

Page Navigation
1 ... 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162