Book Title: Agam 06 Gnatadharm Katha Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा'
श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक इधर उधर भाग छूटे हैं, यह देखकर चिलात भयभीत और उद्विग्न हो गया । वह सुंसुमा को लेकर एक महान् अग्रामिक तथा लम्बे मार्ग वाली अटवी में घुस गया । उस समय धन्य सार्थवाह सुंसुमा दारिका को अटवी के सम्मुख से ले जाती देखकर, पाँचों पुत्रों के साथ छठा आप स्वयं कवच पहनकर, चिलात के पैरों के मार्ग पर चला। वह उसके पीछे-पीछे चलता हुआ, गर्जना करता हुआ, चुनौती देता हुआ, पुकारता हुआ, तर्जना करता हुआ और उसे त्रस्त करता हुआ उसके पीछे-पीछे चलने लगा।
चिलात ने देखा की धन्य सार्थवाह पाँच पुत्रों के साथ आप स्वयं छठा सन्नद्ध होकर मेरा पीछा कर रहा है। यह देखकर निस्तेज, निर्बल, पराक्रमहीन एवं वीर्यहीन हो गया । जब वह सुंसुमा दारिका का निर्वाह करने में समर्थ न हो सका, तब श्रान्त हो गया-ग्लानि को प्राप्त हुआ और अत्यन्त श्रान्त हो गया । अत एव उसने नील कमल के समान तलवार हाथ में ली और सुंसुमा का सिर काट लिया । कटे सिर को लेकर वह उस अग्रामिक या दुर्गम अटवी में घूस गया । चिलात उस अग्रामिक अटवी में प्यास से पीड़ित होकर दिशा भूल गया । वह चोरपल्ली तक नहीं पहँच सका और बीच में ही मर गया । इसी प्रकार हे आयुष्मन श्रमणों ! जो साधु या साध्वी प्रव्रजित होकर वमन बहता यावत् विनाशशील इस औदारिक शरीर के वर्ण के लिए यावत् आहार करते हैं, वे इसी लोक में बहुत-से श्रमणों, श्रमणियों, श्रावकों और श्राविकाओं की अवहेलना का पात्र बनते हैं और दीर्घ संसार में पर्यटन करते हैं, जैसे चिलात चोर अन्त में दुःखी हआ।
धन्य सार्थवाह पाँच पुत्रों के साथ आप छठा स्वयं चिलात के पीछे दौड़ता-दौड़ता प्यास से और भूख से श्रान्त हो गया, ग्लान हो गया और बहुत थक गया । वह चोरसेनापति चिलात को अपने हाथ से पकड़ने में समर्थन हो सका । तब वह वहाँ से लौट पड़ा, जहाँ सुसुमा दारिका को चिलात ने जीवन से रहित कर दिया था । उसने देखा कि बालिका सुंसुमा चिलात के द्वारा मार डाली गई है । यह देखकर कुल्हाड़े से काटे हुए चम्पक वृक्ष के समान या बंधनमुक्त इन्द्रयष्टि के समान धड़ाम से वह पृथ्वी पर गिर पड़ा । पाँच पुत्रों सहित छठा आप धन्य सार्थवाह आश्वस्त हुआ तो आक्रंदन करने लगा, विलाप करने लगा और जोर-जोर के शब्दों से कुह-कुह करता रोने लगा । वह बहुत देर तक आंसू बहाता रहा । पाँच पुत्रों सहित छठे स्वयं धन्य सार्थवाह ने चिलात चोर के पीछे चारों ओर दोड़ने के कारण प्यास और भूख से पीड़ित होकर, उस अग्रामिक अटवी में सब तरफ जल की मार्गणा-गवेषणा की। वह श्रान्त हो गया, ग्लान हो गया, बहुत थक गया और खिन्न हो गया । उस अग्रामिक अटवी में जल की खोज करने पर भी वह कहीं जल न पा सका।
तत्पश्चात् कहीं भी जल न पाकर धन्य सार्थवाह, जहाँ सुसुमा जीवन से रहीत की गई थी, उस जगह आया। उसने ज्येष्ठ पुत्र को बुलाकर कहा-'हे पुत्र ! सुंसुमा दारिका के लिए चिलात तस्कर के पीछे-पीछे चारों ओर दौड़ते हुए प्यास और भूख से पीड़ित होकर हमने इस अग्रामिक अटवी में जल की तलाश की, मगर जल न पा सके । जल के बिना हम लोग राजगृह नहीं पहुँच सकते । अत एव हे देवानुप्रिय ! तुम मुझे जीवन से रहित कर दो और सब भाई मेरे मांस और रुधिर का आहार करो । आहार करके उस आहार से स्वस्थ होकर फिर इस अग्रामिक अटवी को पार कर जाना, राजगृह नगर पा लेना, मित्रों, ज्ञातिजनों, निजजनों, स्वजनों, सम्बन्धीयों और परिजनों से मिलना तथा अर्थ, धर्म और पुण्य के भागी होना । धन्य सार्थवाह के इस प्रकार कहने पर ज्येष्ठ पुत्र ने धन्य सार्थवाह से कहा-'तात ! आप हमारे पिता हो, गुरु हो, जनक हो, देवता-स्वरूप हो, स्थापक हो, प्रतिष्ठापक हो, कष्ट से रक्षा करने वाले हो, दुर्व्यसनों से बचाने वाले हो, अतः हे तात ! हम आपको जीवन से रहित कैसे करें ? कैसे आपके मांस और रुधिर का आहार करें ? हे तात ! आप मुझे जीवन-हीन कर दो और मेरे मांस तथा रुधिर का आहार करो और इस अग्रामिक अटवी को पार करो ।' इत्यादि पूर्ववत् यहाँ तक की अर्थ, धर्म और पुण्य के भागी बनो । तत्पश्चात् दूसरे पुत्र ने धन्य सार्थवाह से कहा-'हे तात ! हम गुरु और देव के समान ज्येष्ठ बन्धु को जीवन से रहित नहीं करेंगे । हे तात ! आप मुझको जीवन से रहित कीजिए, यावत् आप सब पुण्य के भागी बनीए।' तीसरे, चौथे और पाँचवे पुत्र ने भी इसी प्रकार कहा।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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