Book Title: Agam 06 Gnatadharm Katha Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम सूत्र ६, अंगसूत्र- ६, 'ज्ञाताधर्मकथा'
श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन / सूत्रांक जहाँ सहस्राम्रवन नामक उद्यान था और जहाँ श्रेष्ठ अशोकवृक्ष था, वहाँ आकर शिबिका से नीचे ऊतरे । समस्त आभरणों का त्याग किया। समस्त आभरणों का त्याग किया। प्रभावती देवी ने हंस के चिह्न वाली अपनी साड़ी में आभरण ग्रहण किये। तत्पश्चात् मल्ली अरहंत ने स्वयं ही पंचमुष्टिक लोच किया तब शक्र देवेन्द्र देवराज ने मल्ली के केशों को ग्रहण करके उन केशों को क्षीरोदक समुद्र में प्रक्षेप कर दिया । तत्पश्चात् मल्ली अरिहंत ने 'सिद्धों को नमस्कार हो' इस प्रकार कहकर सामायिक चारित्र अंगीकार किया ।
जिस समय अरहंत मल्ली ने चारित्र अंगीकार किया, उस समय देवों और मनुष्यों के निर्घोष, वाद्यों की ध्वनि और गाने-बजाने का शब्द शक्रेन्द्र के आदेश से बिल्कुल बन्द हो गया । जिस समय मल्ली अरहंत ने सामायिक चारित्र अंगीकार किया, उसी समय मल्ली अरहंत को मनुष्यधर्म से ऊपर का उत्तम मनः पर्यवज्ञान उत्पन्न हो गया । मल्ली अरहंत ने हेमन्त ऋतु के दूसरे मास में, चौथे पखवाड़े में अर्थात् पौष मास के शुद्ध पक्ष में पौष मास के शुद्ध पक्ष की एकादशी के पक्ष में पूर्वाह्न काल के समय में, निर्जल अष्टम भक्त तप करके, अश्विनी नक्षत्र के साथ चन्द्र का योग प्राप्त होने पर तीन सौ आभ्यन्तर परिषद् की स्त्रियों के साथ और तीन सौ बाह्य परिषद् के पुरुषों के साथ मुण्डित होकर दीक्षा अंगीकार की। मल्ली अरहंत का अनुसरण करके इक्ष्वाकुवंश में जन्मे तथा राज्य भोगने योग्य हुए आठ ज्ञातकुमार दीक्षित हुए। उनके नाम इस प्रकार हैं- नन्द, नन्दिमित्र, सुमित्र, बलमित्र, भानुमित्र, अमरपति, अमरसेन और आठवें महासेन। इन आठ ज्ञात-कुमारों ने दीक्षा अंगीकार की।
।
सूत्र - १०८
तत्पश्चात् भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक-इन चार निकाय के देवों ने मल्ली अरहंत का दीक्षामहोत्सव किया । महोत्सव करके जहाँ नन्दीश्वर द्वीप था, वहाँ गए । जाकर अष्टाह्निका महोत्सव किया । महोत्सव करके यावत् अपने-अपने स्थान पर लौट गए। तत्पश्चात् मल्ली अरहंत ने, जिस दिन दीक्षा अंगीकार की, उसी दिन के अन्तिम भाग में, श्रेष्ठ अशोकवृक्ष के नीचे, पृथ्वीशिलापट्टक के ऊपर बिराजमान थे उस समय शुभ परिणामों के कारण, प्रशस्त अध्यवसाय के कारण तथा विशुद्ध एवं प्रशस्त लेश्याओं के कारण, तदावरण कर्म की रज को दूर करने वाले लेश्याओं के कारण, तदावरण कर्म की रज को दूर करने वाले अपूर्वकरण को प्राप्त हुए । तत्पश्चात् अरहंत मल्लीको अनन्त सब आवरणों से रहित, सम्पूर्ण और प्रतिपूर्ण केवलज्ञान और केवलदर्शन की उत्पत्ति हुई।
,
सूत्र - १०९
उस काल और उस समय में सब देवों के आसन चलायमान हुए । तब वे सब देव वहाँ आए, सबने धर्मोपदेश श्रवण किया । नन्दीश्वर द्वीप में जाकर अष्टाह्निका महोत्सव किया । फिर जिस दिशा में प्रकट हुए थे, उसी दिशा में लौट गए। कुम्भ राजा भी वन्दना करने के लिए नीकला । तत्पश्चात् वे जितशत्रु वगैरह छहों राजा अपने-अपने ज्येष्ठ पुत्रों को राज्य पर स्थापित करके, हजार पुरुषों द्वारा वहन की जाने वाली शिबिकाओं पर आरूढ़ होकर समस्त ऋद्धि के साथ यावत् गीत-वादित्र के शब्दों के साथ जहाँ मल्ली अरहंत थे, यावत् वहाँ आकर उनकी उपासना करने लगे । तत्पश्चात् मल्ली अरहंत ने उस बड़ी भारी परीषद् को, कुम्भ राजा को और उन जितशत्रु प्रभृति छहों राजाओं को धर्म का उपदेश दिया। परीषद् जिस दिशा से आई थी, उसी दिशा में लौट गई। कुम्भ राजा श्रमणोपासक हुआ। वह भी लौट गया। रानी प्रभावती श्रमणोपासिका हुई। वह भी वापिस चली गई। तत्पश्चात् जितशत्रु आदि छहों राजाओं ने धर्म को श्रवण करके कहा- भगवन्! यह संसार जरा और मरण से आदीप्त है, प्रदीप्त है और आदीप्त प्रदीप्त है, इत्यादि कहकर यावत् वे दीक्षित हो गए। चौदह पूर्वो के ज्ञानी हुए, फिर अनन्त केवल दर्शन प्राप्त करके यावत् सिद्ध हुए । तत्पश्चात् मल्ली अरहंत समस्राम्रवन उद्यान से बाहर नीकले। नीकलकर जनपदों में विहार करने लगे। मल्ली अरहंत के भिषक आदि अट्ठाईस गण और अट्ठाईस गणधर थे । मल्ली अरहंत की चालीस हजार साधुओं की उत्कृष्ट सम्पदा थी बंधुमती आदि पचपन हजार आर्यिकाओं की सम्पदा थी । मल्ली अरहंत की एक लाख चौरासी हजार श्रावकों की उत्कृष्ट सम्पदा थी । मल्ली अरहंत की तीन लाख पैंसठ हजार श्राविकाओं की उत्कृष्ट सम्पदा थी । मल्ली अरहंत की छह सौ चौदह पूर्वी
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा )" आगमसूत्र - हिन्द- अनुवाद"
Page 86