Book Title: Agam 06 Gnatadharm Katha Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा'
श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक पाँचों पाण्डवों ने कच्छुल्ल नारद का खड़े होकर आदर-सत्कार किया । उनकी पर्युपासना की। किन्तु द्रौपदी देवी ने कच्छुल्ल नारद को असंयमी, अविरत तथा पूर्वकृत पापकर्म का निन्दादि द्वारा नाश न करने वाला तथा आगे के पापों का प्रत्याख्यान न करने वाला जान कर उनका आदर नहीं किया, उनके आगमन का अनुमोदन नहीं किया, उनके आने पर वह खड़ी नहीं हुई । उसने उनकी उपासना भी नहीं की। सूत्र - १७५
तब कच्छुल्ल नारद को इस प्रकार का अध्यवसाय चिन्तित प्रार्थित मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ कि'अहो! यह द्रौपदी अपने रूप, यौवन, लावण्य और पाँच पाण्डवों के कारण अभिमानिनी हो गई है, अत एव मेरा आदर नहीं करती यावत् मेरी उपासना नहीं करती । अत एव द्रौपदी देवी का अनिष्ट करना मेरे लिए उचित है ।' इस प्रकार नारद ने विचार करके पाण्डु राजा से जाने की आज्ञा ली। फिर उत्पतनी विद्या का आह्वान किया । उस उत्कृष्ट यावत् विद्याधर योग्य गति से लवणसमुद्र के मध्यभाग में होकर, पूर्व दिशा के सम्मुख, चलने के लिए प्रयत्नशील हुए । उस काल और उस समय में धातकीखण्ड नामक द्वीपमें पूर्व दिशा की तरफ के दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र में अमरकंका नामक राजधानी थी। उसमें पद्मनाभ नामक राजा था । वह महान हिमवन्त पर्वत के समान सार वाला था, (वर्णन) उस पद्मनाभ राजा के अन्तःपुर में सौ रानियाँ थीं। उसके पुत्र का नाम सुनाभ था । वह युवराज भी था । उस समय पद्मनाभ राजा अन्तःपुर में रानियों के साथ उत्तम सिंहासन पर बैठा था।
तत्पश्चात् कच्छुल्ल नादर जहाँ अमरकंका राजधानी थी और जहाँ राजा पद्मनाभ का भवन था, वहाँ आए। पद्मनाभ राजा के भवन में वेगपूर्वक शीघ्रता के साथ ऊतरे । उस समय पद्मनाभ राजा ने कच्छुल्ल नारद को आता देखा । देखकर वह आसन से उठा । उठकर अर्ध्य से उनकी पूजा की यावत् आसन पर बैठने के लिए उन्हें आमंत्रित किया । तत्पश्चात् कच्छुल्ल नारद ने जल से छिड़काव किया, फिर दर्भ बिछाकर उस पर आसन बिछाया और फिर वे उस आसन पर बैठे । यावत् कुशल-समाचार पूछे । इसके बाद पद्मनाभ राजा ने अपनी रानियों में विस्मित होकर कच्छल्ल नारद से प्रश्न किया-'देवानप्रिय ! आप बहत-से ग्रामों यावत गहों में प्रवेश करते हो, तो देवानुप्रिय ! जैसा मेरा अन्तःपुर है, वैसा अन्तःपुर आपने पहले कभी कहीं देखा है ?
तत्पश्चात् राजा पद्मनाभ के इस प्रकार कहने पर कच्छुल्ल नारद थोड़ा मुस्कराए । मुस्करा कर बोले'पद्मनाभ! तुम कुएं के उस मेंढ़क सदृश हो ।' देवानुप्रिय ! कौन-सा वह कुएं का मेंढ़क ? मल्ली अध्ययन समान कहना । 'देवानुप्रिय ! जम्बूद्वीप में, भरतवर्ष में, हस्तिनापुर नगर में द्रुपद राजा की पुत्री, चुलनी देवी की आत्मजा, पाण्डु राजा की पुत्रवधू और पाँच पाण्डवों की पत्नी द्रौपदी देवी रूप से यावत् लावण्य से उत्कृष्ट है, उत्कृष्ट शरीर वाली है । तुम्हारा यह सारा अन्तःपुर द्रौपदी के कटे हुए पैर के अंगूठे की सौंवी कला की भी बराबरी नहीं कर सकता ।' इस प्रकार कहकर नारद ने पद्मनाभ से जाने की अनुमति ली । यावत् चल दिए । तत्पश्चात् पद्मनाभ राजा, कच्छुल्ल नारद से यह अर्थ सूनकर और समझकर द्रौपदी देवी के रूप, यौवन और लावण्य में मुग्ध हो गया, गृद्ध हो गया, लुब्ध हो गया और (उसे पाने के लिए) आग्रहवान हो गया । वह पौषधशाला में पहुँचा । पौषधशाला को यावत् उस पहले के साथी देव से कहा-'देवानुप्रिय ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भरतवर्ष में, हस्तिनापुर नगर में, यावत् द्रौपदी देवी उत्कृष्ट शरीर वाली है । देवानुप्रिय ! मैं चाहता हूँ कि द्रौपदी देवी यहाँ ले आई जाए।'
तत्पश्चात् पूर्वसंगतिक देव ने पद्मनाभ से कहा-'देवानुप्रिय ! यह कभी हुआ नहीं, होता नहीं और होगा भी नहीं कि द्रौपदी देवी पाँच पाण्डवों को छोड़कर दूसरे पुरुष के साथ मानवीय उदार कामभोग भोगती हुई विचरेगी। तथापि मैं तुम्हारा प्रिय करने के लिए द्रौपदी देवी को अभी यहाँ ले आता हूँ।' इस प्रकार कहकर देव ने पद्मनाभ से पूछा । पूछकर वह उत्कृष्ट देव-गति से लवणसमुद्र के मध्य में होकर जिधर हस्तिनापुर नगर था, उधर ही गमन करने के लिए उद्यत हुआ । उस काल और उस समय में, हस्तिनापुर नगर में युधिष्ठिर राजा द्रौपदी देवी के साथ महल की छत पर सुख से सोया हुआ था । उस समय वह पूर्वसंगतिक देव जहाँ युधिष्ठिर राजा था और जहाँ द्रौपदी देवी थी, वहाँ पहुँचकर उसने द्रौपदी देवी को अवस्वापिनी निद्रा दी-द्रौपदी देवी को ग्रहण करके, देवोचित उत्कृष्ट
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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