Book Title: Agam 06 Gnatadharm Katha Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा'
श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक सुबुद्धि अमात्य जितशत्रु राजा के पास गया और बोला-'स्वामिन् ! मैंने स्थविर मुनि से धर्मोपदेश श्रवण किया है और उस धर्म की मैंने पुनः पुनः ईच्छा की है । इस कारण हे स्वामिन ! मैं संसार के भय से उद्विग्न हआ हँ तथा जरा-मरण से भयभीत हुआ हूँ । अतः आपकी आज्ञा पाकर स्थविरों के निकट प्रव्रज्या ग्रहण करना चाहता हूँ।'
तब जितशत्रु राजा ने सुबुद्धि अमात्य से इस प्रकार कहा-देवानुप्रिय ! अभी कुछ वर्षों तक यावत् भोग भोगते हुए ठहरो, उसके अनन्तर हम दोनों साथ-साथ स्थविर मुनियों के निकट मुण्डित होकर प्रव्रज्या अंगीकार करेंगे। तब सुबुद्धि अमात्य ने राजा जितशत्रु के इस अर्थ को स्वीकार कर लिया । तत्पश्चात् सुबुद्धि प्रधान के साथ जितशत्रु राजा को मनुष्य सम्बन्धी कामभोग भोगते हुए बारह वर्ष व्यतीत हो गए । तत्पश्चात् उस काल और उस समय में स्थविर मुनि का आगमन हुआ । तब जितशत्रु ने धर्मोपदेश सूनकर प्रतिबोध पाया, किन्तु उसन कहादेवानप्रिय ! मैं सुबद्धि अमात्य को दीक्षा के लिए आमंत्रित करता हूँ और ज्येष्ठ पुत्र को राजसिंहासन पर स्थापित करता हूँ। तदनन्तर आपके निकट दीक्षा अंगीकार करूँगा। तब स्थविर मनि ने कहा-'देवानप्रिय ! जैसे तम्हें सुख उपजे वही करो।' तब जितशत्रु राजा अपने घर आया । आकर सुबुद्धि को बुलवाया और कहा-मैंने स्थविर भगवान् से धर्मोपदेश श्रवण किया है यावत् मैं प्रव्रज्या ग्रहण करने की ईच्छा करता हूँ | तुम क्या करोगे-तुम्हारी क्या ईच्छा है ? तब सुबुद्धि ने जितशत्रु से कहा-'यावत् आपके सिवाय मेरा दूसरा कौन आधार है ? यावत् मैं भी संसार-भय उद्विग्न हूँ, मैं भी प्रव्रज्या अंगीकार करूँगा।'
राजा जितशत्रु ने कहा-देवानुप्रिय ! यदि तुम्हें प्रव्रज्या अंगीकार करनी है तो जाओ और अपने ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब में स्थापित करो और शिबिका पर आरूढ़ होकर मेरे समीप प्रकट होओ । तब सुबुद्धि अमात्य शिबिका पर आरूढ़ होकर यावत् राजा के समीप आ गया । तत्पश्चात् जितशत्रु ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर उनसे कहा -'जाओ देवानुप्रियो ! अदीनशत्रु कुमार के राज्याभिषेक की सामग्री उपस्थित-तैयार करो ।' कौटुम्बिक पुरुषों ने सामग्री तैयार की, यावत् कुमार का अभिषेक किया, यावत् जितशत्रु राजा ने सुबुद्धि अमात्य के साथ प्रव्रज्या अंगीकार कर ली । दीक्षा अंगीकार करने के पश्चात् जितशत्रु मुनि ने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया । बहुत वर्षों तक दीक्षापर्याय पालकर अन्त में एक मास की संलेखना करके सिद्धि प्राप्त की । दीक्षा अंगीकार करने के अनन्तर सुबुद्धि मुनि ने भी ग्यारह अंगों का अध्ययन किया । बहत वर्षों तक दीक्षापर्याप्त पाली और अंत में एक मास की संलेखना करके सिद्धि पाई । हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने बारहवें ज्ञात-अध्ययन का यह अर्थ कहा है । मैंने जैसा सूना वैसा कहा।
अध्ययन-१२ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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