Book Title: Agam 06 Gnatadharm Katha Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा'
श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/सूत्रांक
अध्ययन-६ - तुम्ब
सूत्र -७४
भगवन् ! श्रमण यावत् सिद्धि को प्राप्त भगवान महावीर ने छठे ज्ञाताध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? जम्बू! उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था । उस राजगृह नगर में श्रेणिक नामक राजा था । उस राजगृह नगर के बाहर ईशानकोण में गुणशील नामक चैत्य था । उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर अनक्रम से विचरते हए, यावत जहाँ राजगह नगर था और जहाँ गणशील चैत्य था, वहाँ पधारे । यथायोग्य अवग्रहण करके संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे । भगवान को वन्दना करने के लिए परीषद् नीकली। श्रेणिक राजा भी नीकला । भगवान ने धर्मदेशना दी। उसे सूनकर परीषद् वापिस चली गई।
उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति नामक अनगार श्रमण भगवान महावीर से न अधिक दूर और न अधिक समीप स्थान पर रहे हए यावत निर्मल उत्तम ध्यान में लीन होकर विचर रहे थे । तत्पश्चात् जिन्हें श्रद्धा उत्पन्न हुई है ऐसे इन्द्रभूति अनगार ने श्रमण भगवान महावीर से इस प्रकार प्रश्न किया-'भगवन् ! किस प्रकार जीव शीघ्र ही गुरुता अथवा लघुता को प्राप्त होते हैं ?'
गौतम ! यथानामक, कोई पुरुष एक बड़े, सूखे, छिद्ररहित और अखंडित तुम्बे को दर्भ से और कुश से लपेटे और फिर मिट्टी के लेप से लीपे, फिर धूप में रख दे । सूख जाने पर दूसरी बार दर्भ और कुश से लपेटे और मिट्टी के लेप से लीप दे । लीप कर धूप में सूख जाने पर तीसरी बार दर्भ और कुश में लपेटे और लपेट कर मिट्टी का लेप चढ़ा दे । सूखा ले । इसी प्रकार, इसी उपाय से बीच-बीच में दर्भ और कुश से लपेटता जाए, बीच-बीच में लेप चढ़ाता जाए और बीच-बीच में सूखाता जाए, यावत् आठ मिट्टी के लेप तुम्बे पर चढ़ावे । फिर उसे अथाह, और अपौरुषिक जल में डाल दिया जाए । तो निश्चय ही हे गौतम ! वह तुम्बा मिट्टी के आठ लेपों के कारण गुरुता को प्राप्त होकर, भारी होकर तथा गुरु एवं भारी हुआ ऊपर रहे हुए जल को पार करके नीचे धरती के तलभाग में स्थित हो जाता है । इसी प्रकार हे गौतम ! जीव भी प्राणातिपात से यावत् मिथ्यादर्शन शल्य से क्रमशः आठ कर्मप्रकृतियों का उपार्जन करते हैं । उस कर्मप्रकृतियों की गुरुता के कारण, भारीपन के कारण और गुरुता के कारण मृत्यु को प्राप्त होकर, इस पृथ्वी-तल को लाँघ कर नीचे नरक-तल में स्थित होते हैं । इस प्रकार गौतम ! जीव शीघ्र गुरुत्व को प्राप्त होते हैं।
___ अब हे गौतम ! उस तुम्बे का पहला मिट्टी का लेप गीला हो जाए, गल जाए और परिशटित हो जाए तो वह तुम्बा पृथ्वीतल से कुछ ऊपर आकर ठहरता है । तदनन्तर दूसरा मृत्तिकालेप गीला हो जाए, गल जाए और हट जाए तो तुम्बा कुछ और ऊपर आता है । इस प्रकार, इस उपाय से उन आठों मृत्तिकालेपों के गीले हो जान यावत् हट जाने पर तुम्बा निर्लेप, बंधनमुक्त होकर धरणीतल से ऊपर जल की सतह पर आकर स्थित हो जाता है। इसी प्रकार, हे गौतम ! प्राणातिपातविरमण यावत् मिथ्यादर्शनशल्यविरमण से जीव क्रमशः आठ कर्मप्रकृतियों का क्षय करके ऊपर आकाशतल की ओर उड़ कर लोकाग्र भाग में स्थित हो जाते हैं । इस प्रकार हे गौतम ! जीव शीघ्र लघुत्व को प्राप्त करते हैं । हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने छठे ज्ञात-अध्ययन का यह अर्थ कहा है । वही मैं तुमसे कहता हूँ।
अध्ययन-६ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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