Book Title: Agam 06 Gnatadharm Katha Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा'
श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक जाने लगे । उसके आगे-आगे विशाल घोड़े, हाथी, रथ और पैदल योद्धा, सुभटों के बड़े समूह के समूह चले । वह साकेत नगर से नीकला । जहाँ नागगृह था, वहाँ आकर हाथी के स्कंध से नीचे उतरा । प्रतिमा पर दृष्टि पड़ते ही उसने प्रणाम किया । पुष्प-मंडप में प्रवेश किया । वहाँ उसने एक महान श्रीदामकाण्ड देखा।
तत्पश्चात् प्रतिबुद्धि राजा उस श्रीदामकाण्ड को बहुत देर तक देखकर उस श्रीदामकाण्ड के विषय में उसे आश्चर्य उत्पन्न हुआ । उसके सुबुद्धि अमात्य से इस प्रकार कहा-हे देवानुप्रिय ! तुम मेरे दूत के रूप में बहुतेरे ग्रामों, आकरों, यावत् सन्निवेशों आदि में घूमते हो और बहुत से राजाओं एवं ईश्वरों आदि के गृहों में प्रवेश करते हो; तो क्या तुमने ऐसा सुन्दर श्रीदामकाण्ड पहले कहीं देखा है जैसा पद्मावती देवी का यह श्रीदामकाण्ड है ? तब सुबुद्धि अमात्य ने प्रतिबुद्धि राजा से कहा-स्वामिन् ! मैं एक बार किसी समय आपके दौत्यकार्य से मिथिला राजधानी गया था । वहाँ मैं कुम्भ राजा की पुत्री और प्रभावती देवी की आत्मजा, विदेह की उत्तम राजकुमारी मल्ली के संवत्सरप्रतिलेखन उत्सव के महोत्सव के समय दिव्य श्रीदामकाण्ड देखा था । उस श्रीदामकाण्ड के सामने पद्मावती देवी का यह श्रीदामकाण्ड शतसहस्र-लाखवां अंश भी नहीं पाता-लाखवें अंश की भी बराबरी नहीं कर सकता।
तत्पश्चात् प्रतिबुद्धि राजा ने सुबुद्धि मंत्री से इस प्रकार कहा-देवानुप्रिय ! विदेह की श्रेष्ठ राजकुमारी मल्ली कैसी है ? जिसकी जन्मगांठ के उत्सव में बनाये गये श्रीदामकाण्ड के सामने पद्मावती देवी का यह श्रीदामकाण्ड लाखवां अंश भी नहीं पाता ? तब सुबुद्धि मंत्री ने इक्ष्वाकुराज प्रतिबुद्धि से कहा-'स्वामिन् ! विदेह की श्रेष्ठ राजकुमारी मल्ली सुप्रतिष्ठित और कछुए के समान उन्नत एवं सुन्दर चरण वाली है, इत्यादि । तत्पश्चात् प्रतिबुद्धि राजा ने सुबुद्धि अमात्य से यह अर्थ सूनकर और हृदय में धारण करके और श्रीदामकाण्ड की बात से हर्षित होकर दूत को बुलाया । और कहा-देवानुप्रिय ! तुम मिथिला राजधानी जाओ । वहाँ कुम्भ राजा की पुत्री, पद्मावती देवी की आत्मजा और विदेह की प्रधान राजकुमारी मल्ली की मेरी पत्नी के रूप में मंगनी करो । फिर भले ही उसके लिए सारा राज्य शुल्क-मूल्य रूप में देना पड़े। तत्पश्चात् उस दूत ने प्रतिबुद्धि राजा के इस प्रकार कहने पर हर्षित
और सन्तुष्ट होकर उसकी आज्ञा अंगीकार की । जहाँ अपना घर था और जहाँ चार घंटों वाला अश्वरथ था, वहाँ आया । आकर चार घंटोंवाले अश्वरथ को तैयार कराया । यावत् घोड़ों, हाथियों, बहुत से सुभटों के समूह के साथ साकेतनगर से नीकला । जहाँ विदेह जनपद था, जहाँ मिथिला राजधानी थी, वहाँ जाने के लिए प्रस्थान किया। सूत्र - ८७
उस काल और उस समय में अंग नामक जनपद था । चम्पा नगरी थी । चन्द्रच्छाय अंगराज-अंग देश का राजा था । उस चम्पा नगरी में अर्हन्नक प्रभृति बहुत-से सांयात्रिक नौवणिक रहते थे । वे ऋद्धिसम्पन्न थे और किसी से पराभूत होने वाले नहीं थे । उनके अर्हन्नक श्रमणोपासक भी था, वह जीव-अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञाता था । वे अर्हन्नक आदि सांयात्रिक नौवणिक किसी समय एक बार एक जगह इकटे हुए, तब उनमें आपस में इस प्रकार कथासंलाप हुआ-हमें गणिम, धरिम, मेय और परिच्छेद्य यह चार प्रकार का भांड लेकर, जहाज द्वारा लवणसमुद्र में प्रवेश करना चाहिए । इस प्रकार विचार करके उन्होंने परस्पर में यह बात अंगीकार करके गणिम, धरिम, मेय और परिच्छेद्य भांड को ग्रहण करके छकड़ी-छकड़े भरे । शुभ तिथि, करण, नक्षत्र और मुहूर्त में अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार बनवाया । भोजन की वेला में मित्रों, ज्ञातिजनों, निजजनों, स्वजनों, सम्बन्धीजनों एवं परिजनों को जिमाया, यावत् उनकी अनुमति लेकर गाड़ी-गाड़े जोते | चम्पा नगरी से नीकलकर जहाँ गंभीर नामक पोतपट्टन था, वहाँ आए ।
गंभीर नामक पोतपट्टन में आकर उन्होंने गाड़ी-गाड़े छोड़ दिए । जहाज सज्जित करके गणिम, धरिम, मेय और परिच्छेद्य-चार प्रकार का भांड भरा । भरकर उसमें चावल, आटा, तेल, घी, गोरस, पानी, पानी के बरतन, औषध, भेषज, घास, लकड़ी, वस्त्र, शस्त्र तथा और भी जहाज में रखने योग्य अन्य वस्तुएं जहाज में भरीं । प्रशस्त तिथि, करण, नक्षत्र और मुहूर्त में अशन, पान, खाद्य तैयार करवा कर मित्रों, ज्ञातिजनों, निजजनों, स्वजनों, सम्बन्धीयों एवं परिजनों को जिमा कर उनसे अनुमति ली । जहाँ नौका का स्थान था, वहाँ आए । तत्पश्चात् उन
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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