Book Title: Agam 06 Gnatadharm Katha Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 76
________________ आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा' श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक थी और उत्कृष्ट शरीर वाली थी। उस सुबाहु बालिका का किसी समय चातुर्मासिक स्नान का उत्सव आया । तब कुणालाधिपति रुक्मि राजा ने सुबाहु बालिका के चातुर्मासिक स्नान का उत्सव आया जाना । कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा-'हे देवानुप्रियो ! कल सुबाहु बालिका के चातुर्मासिक स्नान का उत्सव होगा । अत एव तुम राजमार्ग के मध्य में, चौक में जल और थल में उत्पन्न होने वाले पाँच वर्गों के फूल लाओ और एक सुगंध छोड़ने वाली श्रीदामकाण्ड छत में लटकाओ।' यह आज्ञा सूनकर उन कौटुम्बिक पुरुषों ने उसी प्रकार कार्य किया। तत्पश्चात् कुणाल देश के अधिपति रुक्मि राजा ने सुवर्णकारों की श्रेणी को बुलाकर कहा-'हे देवानुप्रियो! शीघ्र ही राजमार्ग के मध्य में, पुष्पमंडप में विविध प्रकार के पंचरंगे चावलों से नगर का अवलोकन करो-नगर का चित्रण करो । उसके ठीक मध्य भाग में एक पाट रखो।' यह सूनकर उन्होंने इसी प्रकार कार्य करके आज्ञा वापिस लौटाई । तत्पश्चात कणालाधिपति रुक्मि हाथी के श्रेष्ठ स्कन्ध पर आरूढ हआ । चतरंगी सेना, बडे-बडे योद्धाओं और अंतःपुर के परिवार आदि से परिवृत्त होकर सुबाहु कुमारी को आगे करके, जहाँ राजमार्ग था और जहाँ पुष्प मंडप था, वहाँ आया । हाथी के स्कन्ध से नीचे उतरकर पुष्पमंडप में प्रवेश किया । पूर्व दिशा की ओर मुख करके उत्तम सिंहासन पर आसीन हुआ। तत्पश्चात् अन्तःपुर की स्त्रियों ने सुबाहु कुमारी को उस पाठ कर बिठा कर चाँदी और सोने आदि के कलशों से उसे स्नान कराया । सब अलंकारों से विभूषित किया । फिर पिता के चरणों में प्रणाम करने के लिए लाई। तब सुबाहु कुमारी रुक्मि राजा के पास आई । आकर उसने पिता के चरणों का स्पर्श किया । उस समय रुक्मि राजा ने सुबाह कुमारी को अपनी गोद में बिठा लिया । बिठाकर सुबाह कुमारी के रूप, यौवन और लावण्य को देखने से उसे विस्मय हुआ । उसने वर्षधर को बुलाया । इस प्रकार कहा-'हे देवानुप्रिय ! तुम मेरे दौत्य कार्य से बहुत-से ग्रामों, आकरों, नगरों यावत् सन्निवेशों में भ्रमण करते हो और अनेक राजाओं, राजकुमारों यावत् सार्थवाहों आदि के गृह में प्रवेश करते हो, तो तुमने कहीं भी किसी राजा या ईश्वर के यहाँ ऐसा मज्जनक पहले देखा है, जैसा इस सुबाह कुमारी का मज्जन-महोत्सव है ?' वर्षधर ने रुक्मि राजा से हाथ जोड़कर मस्तक पर हाथ घूमाकर अंजलिबद्ध होकर कहा-'हे स्वामिन् ! एक बार मैं आपके दूत के रूप में मिथिला गया था । मैंने वहाँ कुंभ राजा की पुत्री और प्रभावती देवी की आत्मजा विदेहराज की उत्तम कन्या मल्ली का स्नान-महोत्सव देखा था। सुबाहु कुमारी का यह मज्जन-उत्सव उस मज्जन-महोत्सव के लाखवें अंश को भी नहीं पा सकता । वर्षधर से यह बात सुनकर और हृदय में धारण करके, मज्जन-महोत्सव का वृत्तांत सूनने से जनित हर्ष वाले रुक्मि राजा ने दूत को बुलाया । शेष पूर्ववत् । दूत को बुलाकर कहा-दूत मिथिला नगरी जाने को रवाना हुआ। सूत्र-९० उस काल और उस समय में काशी नामक जनपद था । उस जनपद में वाराणसी नामक नगरी थी । उसमें काशीराज शंख नामक राजा था । एक बार किसी समय विदेहराज की उत्तम कन्या मल्ली के उस दिव्य कुण्डलयुगल का जोड़ खुल गया । तब कुम्भ राजा ने सुवर्णकार की श्रेणी को बुलाया और कहा-'देवानुप्रियो ! इस दिव्य कुण्डलयुगल के जोड़ को साँध दो। तत्पश्चात् सुवर्णकारों की श्रेणी ने 'तथा-ठीक है', इस प्रकार कहकर इस अर्थ को स्वीकार किया । उस दिव्य कुण्डलयुगल को ग्रहण किया । जहाँ सुवर्णकारों के स्थान थे, वहाँ आए । उन स्थानों पर कुण्डलयुगल रखा । उस कुण्डलयुगल को परिणत करते हुए उसका जोड़ साँधना चाहा, परन्तु साँधने में समर्थ न हो सके। तत्पश्चात् वह सुवर्णकार श्रेणी, कुम्भ राजा के पास आई । आकर दोनो हाथ जोड़कर और जय-विजय शब्दों से बधाकर इस प्रकार निवेदन किया-'स्वामिन् ! आज आपने हम लोगों को बुलाकर यह आदेश दिया था कि कुण्डलयुगल की संधि जोड़कर मेरी आज्ञा वापिस लौटाओ । हम अपने स्थानों पर गए, बहुत उपाय किये, परन्तु इस संधि को जोड़ने के लिए शक्तिमान न हो सके । अत एव हे स्वामिन् ! हम दिव्य कुण्डलयुगल सरीखा दूसरा कुण्डल युगल बना दें ।' सुवर्णकारों का कथन सूनकर और हृदयंगम करके कुम्भ राजा ऋद्ध हो गया । मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 76

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