Book Title: Agam 06 Gnatadharm Katha Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 43
________________ आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा' श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक साथ नीहरण किया । अनेक लौकिक मृतक-कृत्य किए । तत्पश्चात् कुछ समय व्यतीत हो जाने पर वह उस शोक से रहित हो गया। सूत्र-५१ तत्पश्चात् किसी समय धन्य सार्थवाह को चुगलखोरों ने छोटा-सा राजकीय अपराध लगा दिया । तब नगररक्षकों ने धन्य सार्थवाह को गिरफ्तार कर लिया । कारागार में ले गए । कारागार में प्रवेश कराया और विजय चोर के साथ एक ही बेड़ी में बांध दिया । भद्रा आर्या ने अगले दिन यावत् सूर्य के जाज्वल्यमान होने पर विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन तैयार किया । भोजन तैयार करके भोजन रखने का पिटक ठीक-ठाक किया और उसमें भोजन के पात्र रख दिए । फिर उस पिटक को लांछित और मुद्रित कर दिया । सुगंधित जल से परिपूर्ण छोटा-सा घड़ा तैयार किया । फिर पंथक दास चेटक को आवाज दी और कहा-'हे देवानुप्रिय ! तू जा । यह विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम लेकर कारागार में धन्य सार्थवाह के पास ले जा। तत्पश्चात् पंथक ने भद्रा सार्थवाही के इस प्रकार कहने पर हृष्ट-तुष्ट होकर उस भोजन-पिटक को और उत्तम सुगंधित जल से परिपूर्ण घट को ग्रहण किया । राजगृह के मध्यमार्ग में हदोरक जहाँ कारागार था और जहाँ धन्य सार्थवाह था, वहाँ पहुँचा । भोजन का पिटक रख दिया । उसे लांछन और मुद्रा से रहित किया । फिर भोजन के पात्र लिए, उन्हें धोया और फिर हाथ धोने का पानी दिया । धन्य सार्थवाह को वह विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन परोसा । उस समय विजय चोर ने धन्य सार्थवाह से कहा- 'देवानुप्रिय ! तुम मुझे इस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन में से संविभाग करो।' तब धन्य सार्थवाह ने उत्तर में विजय चोर से कहा -'हे विजय ! भले ही मैं यह विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम काकों और कुत्तों को दे दूँगा अथवा उकरड़े में फैंक दूंगा परन्तु तुझ पुत्रघातक, पुत्रहन्ता, शत्रु, वैरी, प्रतिकूल आचरण करने वाले एवं प्रत्यमित्र-को इस अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य में से संविभाग नहीं करूँगा। - इसके बाद धन्य सार्थवाह ने उस विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का आहार किया । आहार करके पंथक को लौटा दिया-रवाना कर दिया । पंथक दास चेटक ने भोजन का वह पिटक लिया और लेकर जिस ओर से आया था, उसी ओर लौट गया । विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन करने के कारण धन्य सार्थवाह को मल-मूत्र की बाधा उत्पन्न हुई । तब धन्य सार्थवाह ने विजय चोर से कहा-विजय ! चलो, एकान्त में चलें, जिससे मैं मलमूत्र का त्याग कर सकूँ । तब विजय चोर ने धन्य सार्थवाह से कहा-देवानुप्रिय ! तुमने विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम का आहार किया है, अत एव तुम्हें मल और मत्र की बाधा उत्पन्न हई है । मैं तो इन बहुत चाबुकों के प्रहारों से यावत् लता के प्रहारों से तथा प्यास और भूख से पीड़ित हो रहा हूँ | मुझे मल-मूत्र की बाधा नहीं है । जाने की इच्छा हो तो तुम्ही एकान्त में जाकर मल-मूत्र का त्याग करो। धन्य सार्थवाह विजय चोर के इस प्रकार कहने पर मौन रह गया । इसके बाद थोड़ी देर में धन्य सार्थवाह उच्चार-प्रस्रवण की अति तीव्र बाधा से पीड़ित होता हुआ विजय चोर से फिर कहने लगा-विजय, चलो, यावत् एकान्त में चलें । तब विजय चोर ने धन्य सार्थवाह से कहा-देवानुप्रिय ! यदि तुम उस विपुल अशन, पान, खादिम र स्वादिम में से संविभाग करो अर्थात् मुझे हिस्सा देना स्वीकार करो तो मैं तुम्हारे साथ एकान्त में चलूँ । धन्य सार्थवाह ने विजय से कहा-मैं तुम्हें विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम में से संविभाग करूँगा-तत्पश्चात् विजय ने धन्य सार्थवाह के इस अर्थ को स्वीकार किया । फिर विजय, धन्य सार्थवाह के साथ एकान्तमें गया । धन्य सार्थवाह ने मल-मूत्र परित्याग किया । जल से स्वच्छ और परम शुचि हुआ । लौटकर अपने स्थान पर आया । तत्पश्चात् भद्रा सार्थवाही ने दूसरे दिन सूर्य के देदीप्यमान होने पर विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तैयार करके पंथक के साथ भेजा । यावत् पंथक ने धन्य को जिमाया । तब धन्य सार्थवाह ने विजय चोर को उस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम में से भाग दिया । तत्पश्चात् धन्य सार्थवाह ने पंथक दास चेटक को रवाना कर दिया । पंथक भोजन-पिटक लेकर कारागार से बाहर नीकला । नीकलकर राजगृह नगर के बीचों मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 43

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