Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 14
________________ १३४ चोयालीसइमो समवानो! चौवालीसवां समवाय ऋपिभापित के अध्ययन, विमल के पुरुपयुग, घरण के भवनावास, महत्ती विमान-प्रविभक्ति के उद्देशनकाल । १३८ पणयालीसइमो समवानो/पंतालीसवां समवाय समयक्षेत्र, मीमांतक नरक का आयाम-विष्कम्भ, धर्म की ऊँचाई, मन्दर का अन्तर, नक्षत्रों का चन्द्र के साथ योग, महती विमान-प्रविभक्ति के उद्देशन-काल । छायालीसइमो समवानो/छियालीसवां समवाय दृष्टिवाद के मातृकापद, प्रभंजनेन्द्र के भवनावाम । सत्तचालीसइमो समवानो/संतालीसवां समवाय सूर्य-दर्शन, अग्निभूति का गृह्वास । अडयालीसइमो समवानो/अड़तालीसवां समवाय चक्रवर्ती के पत्तन, धर्मजिन के गण और गणवर, सूर्यमण्डल का विस्तार । एगणपण्णसइमो समवायो/उनचासवां समवाय ___ भिक्षुप्रतिमा, देवकुरु-उत्तरकुरु के मनुष्य, त्रीन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट स्थिति । पण्णासइमो समवायो/पचासवां समवाय मुनिसुव्रत की आर्याएँ, दीर्घवैताढ्यों का विप्कंभ, लान्तककल्प के विमानावास, तिमिस्रखण्डप्रपात गुफाओं की लम्बाई, कांचनक पर्वतों का विस्तार । - १४५ एगपण्णासइमो समवायो/इक्यावनवां समवाय आचारांग-प्रथम श्रुतस्कन्ध के उद्देशनकाल, चमरेन्द्र की सुधर्मा-सभा, सुप्रभ वलदेव का आयुप्य, उत्तरकर्मप्रकृतियाँ।. . - १४६ बावण्णइमो समवायो/वावनवां समवाय ।। ___मोहनीय-कर्म के नाम, गोस्तूभ आदि पर्वतों का अन्तर, कर्मप्रकृतियां, सौधर्म-सनत्कुमार-माहेन्द्र के विमानावास। . . . . . १४७ तेवण्णईमो समवानो/तिरपनवां समवाय देवकुरु आदि की जीवाएँ, महावीर के श्रमणों का अनुत्तरविमानों में जन्म, संमूछिम उरपरिसपों की उत्कृप्ट स्थिति । :: . .१४६ १४

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