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Mario
आचारांग सूत्र
जो मनुष्य जीवों की हिंसा में अपना अनिष्ट समझता है, वही उसका त्याग कर सकता है। जो अपना दुःख जानता है, वह अपने से बाहर के का दुःख जानता है; और जो अपने से बाहर का दुख जानता हैं वही अपना दुःख जानता हैं । यह दोनों समान हैं । शांति को प्राप्त हुए संयमी दूसरे जीवों की हिंसा करके जीने की इच्छा नहीं करते । [५५-४७ ]
. प्रमाद और उसके कारण कामादि में श्रासक्ति ही हिंसा है। इस लिये बुद्धिमान् को, प्रमाद से मैंने जो कुछ पहिले किया, श्रागे नहीं करूंगा ऐसा निश्चय करना चाहिये । [ ३४-३५]
हिंसा के मूल रूप होने के कारण कामादि ही संसार में भटकाते हैं । संसार में भटकना ही कामादि का दूसरा नाम है। मनुष्य अनेक प्रकार के रूप देख कर और शब्द सुनकर रूपों और शब्दों में मूर्छित हो जाता है। इसी का नाम संसार है। ऐसा मनुष्य जिनों की आज्ञा के अनुसार चल नहीं सकता, किन्तु बारबार कामादि को भोगता हुश्रा हिंसा आदि वक्र प्रवृत्तियों को करता हुआ प्रमाद के कारण घर में ही मूर्छित रहता है। [४०-४४ ] ___विविध कर्मरूपी हिंसा की प्रवृत्ति मैं नहीं करूं, इस भाव से उद्यत हुश्रा और इसी को माननेवाला तथा अभय अवस्था को जाननेवाला बुद्धिमान ही इन प्रवृत्तियों को नहीं करता । जिन प्रवचन में ऐसे ही मनुष्य को 'उपरत' और 'अनगार' कहा है। संसार में होने वाली छः काय जीवों की हिंसा को वह बराबर जानता है, वहीं मुनि कर्मों को बराबर समझता है, ऐसा मैं कहता हूँ । बुद्धिमान छकाय जीवों की हिंसा न करे, न करावे और करते हुए को अनु
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