Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Jain Shwetambar Conference Mumbai

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Page 70
________________ - भगवान महावीर का तप [६३ करते रहते थे। सदा आकांक्षा रहित रहने वाले भगवान किसी समय ठंडा अन्न खाते; तो किसी समय छै, पाठ, दस या बारह भक्त के बाद भोजन करते थे। [५८-६०] गांव या नगर में जाकर वे दूसरों के लिये तैयार किया हुआ आहार सावधानी से खोजते थे । आहार लेने जाते समय मार्ग में भूखे प्यासे कौए श्रादि पक्षियों को बैठा देखकर, और ब्राह्मण, श्रमण, भिखारी अतिथि, चांडाल, कुत्ते, बिल्ली आदि को घरके आगे देखकर, उनको आहार मिलने में बाधा न हो या उनको अप्रीति न हो, इस प्रकार भगवान वहाँ से धीरे धीरे चले जाते और दूसरे स्थान पर अहिंसा पूर्वक भिक्षा को 'खोजते थे। कई बार भिगोया हुआ, सूखा या ठंडा आहार लेते थे, बहुत दिनों की खिचडी, बाकले, और पुलाग (निस्सार खाद्य) भी लेते थे। ऐसा भी न मिल पाता तो भगवान शांतभाव से रहते थे । [६२-६७ ] भगवान नीरोग होने पर भी भरपेट भोजन न करते थे और न औषधि ही लेते थे। शरीर का स्वरूप समझ कर भगवान उसकी शुद्धि के लिये संशोधन (जुलाब), वमन, विलेपन, स्नान और दंत प्रक्षालन नहीं करते थे । इसी प्रकार शरीर के श्राराम के लिये वे अपने हाथ-पैर नहीं दबवाते थे। [५४-५५ ] कामसुखों से इस प्रकार विरत होकर वे अबहुवादी ब्राह्मण विचरते थे। उन्होंने कषायों की ज्वाला शांत कर दी थी और उनका दर्शन विशद था। अपनी साधना में वे इतने निमग्न थे कि उन्होंने कभी अपनी प्रांख तक न मसली और न शरीर को ही खुजाया । रति और अरति पर विजय प्राप्त करके उन्होंने इस लोक के और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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