Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Jain Shwetambar Conference Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 134
________________ भावनाएँ [ १२७ किया । का त्याग ( अपश्चिम मारणांतिक संलेखना ) करके देहत्याग तब वे अच्युतकल्प नामक बारहवें स्वर्ग में देव हुए। वहाँ से वे महाविदेह क्षेत्र में जाकर अन्तिम उच्च्छास के समय सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होकर निवारी को प्राप्त होंगे, और सब दुःखों का अन्त करेंगे | [ ७८ ] भगवान् महावीर ने तीस वर्ष गृहस्थाश्रम में रह कर अपने मात पिता का देहान्त होने पर अपनी प्रतिज्ञा ( माता-पिता के देहान्त होने पर प्रव्रज्या लेने की) पूरी करने का समय जानकर अपना धन-धान्य, सोना-चांदी रत्न आदि याचकों को दान देकर, हेमन्त ऋतु के पहिले पक्ष में, मार्गशीर्ष कृष्णा दशमी को प्रव्रज्या लेनेका निश्चय किया भगवान्, सूर्योदय के समय से दूसरे दिन तक एक करोड़ और aro लाख सोनैया ( मुहर ) दान देते थे । इस प्रकार पूरे एक वर्ष तक भगवान् ने तीन अरब, अठासी करोड़ और अस्सी लाख सोने की मुहरें दान में दी । यह सब धन इन्द्र की श्राज्ञा से वैश्रमण ( कुबेर देव ) और उसके देव महावीर को पूरा करते थे । पन्द्रह कर्मभूमि में ही उत्पन्न होने वाले तीर्थंकर को जब दीक्षा लेने का समय निकट आता है, तब पांचवें करूप ब्रह्मलोक में काली रेखा के विमानों में रहने वाले लोकांतिक देव उनको श्राकर कहते हैं – 'हे भगवान् ! सकल जीवों के हित कारक धर्मतीर्थ की आप स्थापना करें | इसी के अनुसार २६ वें वर्ष उन देवों ने श्राकर भगवान् से ऐसी प्रार्थना की । , वार्षिक दान पूरा होने लेने की तैयारी की । उस Jain Education International भगवान् ने दीक्षा पर, तीसवें वर्ष में समय सब देव - देवी अपनी समस्त , For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152