Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Jain Shwetambar Conference Mumbai

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Page 146
________________ wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww सुभाषित सब जीवों को श्रायुष्य और सुख प्रिय है, तथा दुःख और वध, अप्रिय और प्रतिकूल है । वे जीवन की इच्छा रखने वाले और इसको प्रिय मानने वाले हैं । सबको ही जीवन प्रिय है । प्रमाद के कारण अब तक जीवों को जो दुःख दिया है, उसको बराबर समझ कर, फिर न करे, इसीका नाम सच्चा विवेक है । और यही कर्मों की उपशांति है। भगवान के इसे उपदेश को समझने वाला और सत्य के लिये प्रयत्नशील मनुष्य किसी पापकर्म को नहीं करता और न कराता है। से मेहावी जे अणुग्धायणस्स खेयन्ने, जे य बन्धपमोक्खमन्नेसी ( २: १०२) ... जो अहिंसा में बुद्धिमान है और जो बंध से मुक्ति प्राप्त करने में प्रयत्नशील है, वही सच्चा बुद्धिमान है। जे पमत्ते गुणट्ठिए. से हु दण्डे पवुच्चइ तं परिन्नाय मेहावी, 'इयाणि नो जमहं पुन्बमकासी पमाएणं' (१:३४-६) प्रमाद और उससे होने वाली काम लोगों में शासक्ति ही हिंसा है । इस लिये, बुद्धिमान ऐसा निश्चय करे कि, प्रमाद से मैंने जो पहिले किया, उसे आगे नहीं करूँ । पहू य एजस्स दुगुञ्छणाए । आयंकदंसी 'अहियं' ति नच्चा ॥ जे अज्झत्थं जाणइ, से बहिया जाणइ जे बहिया जाणइ, से अज्झत्थं जाणइ एयं तुलं अन्नेसिं । इह सन्तिगया दविया : नावखन्ति जीविउ । (१:५५-७) ___जो मनुष्य विविध जीवों की हिंसा में अपना अनिष्ट देख सकता है, वही उसका त्याग करने में समर्थ हो सकता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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