Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Jain Shwetambar Conference Mumbai

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Page 142
________________ विमुक्ति [१३५ सोलहवाँ अध्ययन विमुक्ति - सर्वोत्तम ज्ञानी पुरुषों के इस उपदेश को सुन कर, मनुष्य को सोचना चाहिये कि चारों गति में जीव को अनित्य शरीर ही प्राप्त होता है। ऐसा सोचकर बुद्धिमान मनुष्य घर के बन्धन का त्याग करके दोषयुक्त प्रवृत्तियों और (उनके कारणरूप) अासक्ति का निर्भय होकर त्याग करे। इस प्रकार घरबार की प्रासक्ति और अनन्त जीवों की हिंसाका त्याग करके, सर्वोत्तम भिक्षाचर्या से विचरने वाले विद्वान् भिक्षु को, मिथ्यादृष्टि मनुष्य, संग्राम में हाथी पर लगने वाले तीरों के समान बुरे वचन कहते हैं, और दूसरे कष्ट देते हैं । इन वचनों और कष्टों को उठाते हुए, वह ज्ञानी, मन को व्यथित किये बिना सब सहन करे और चाहे जैसी आंधी में भी अकंप रहने वाले पर्वत के समान अडग रहे । __ भिन्तु 'सुख दुःख में समभाव रखकर ज्ञानियों की संगति में रहे, और अनेक प्रकार के दुःखों से दुःखी ऐसे अस, स्थावर नीवों को अपनी किसी किया से-परिताप न दे। इस प्रकार करने वाला और पृथ्वी के समान सब कुछ सहन कर लेने वाला महा मुनि श्रमण कहलाता है। . उत्तम धर्म-पद का प्राचारण करने वाला, तृष्णा रहित, ध्यान और समाधि से युक्त और अग्नि की ज्वाला के समान तेजस्वी ऐसे विद्वान् भितु के तप, प्रज्ञा और यश वृद्धि को प्राप्त होते हैं । * यह अध्ययन चौथी चूडा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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