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इसी प्रकार वृक्षों में फल लगे देखकर ऐसा न पके हैं, या पका कर खाने योग्य हैं या अभी खाने हैं या टुकड़े करने योग्य हैं कि, फल के भार से यह लगे हैं या फलों का रंग अच्छा है ।
श्राचारांग सूत्र
कहे कि ये फल योग्य हैं, नरम
। परन्तु उन वृत्तों को देखकर ऐसा कहे बहुत झुक गये हैं, उनमें बहुत से फल
भिक्षु खेतों में धान्य खड़ा देखकर ऐसा न कहे कि वह पक गया है, या हरा है या सेकने योग्य है या धानी फोड़ने के योग्य है । पर ऐसा कहे कि, वह ऊगा हुआ है, बढ़ा हुआ है, सख्त ह गया है, रस भरा हैं, उसमें दाने लग गये हैं या लग [ १३८ ]
रहे हैं
कि, यह
भिक्षु अनेक प्रकार के शब्द सुन कर ऐसा न कहे top या बुरा है परन्तु उसका स्वरूप बताने के लिये सुशब्द को सुशब्द और दुःशब्द को दुःशब्द कहे। ऐसा ही रूप, गन्ध और रस के सम्बन्ध में भी करे । [ १३६ ]
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भिक्षु क्रोध, मान, माया और लोभ का त्याग करके विचारपूर्वक विश्वास करके ही बोले; जैसा सुने, वैसा ही कहे; तथा घबराये बिना, विवेक से, समभाव पूर्वक, सावधानी से बोले । [ १४० 1
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भिक्षु या भिक्षुणी के श्राचार की यही सम्पूर्णता है कि वह सब विषयों में सदा रागद्वेषरहित और अपने कल्याण में तत्पर रह कर सावधानी से प्रवृत्ति करे ।
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