Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Jain Shwetambar Conference Mumbai

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Page 116
________________ - वस्त्र wwwwwwwwwwwwwwwwww.uwanrwwwani या उसका बदला न करे या दूसरे को जा कर ऐसा न कहे कि, 'हे आयुष्मान् , क्या तुझे यह वस्त्र चाहिये ?' और, यदि वह मजबूत हो तो उसे फाड़ न फेंके परन्तु काम में लिये हुए उस वस्त्र को मांगकर ले जाने वाले को ही दे दे-खुद काम में न ले । भिक्षुओं का ऐसा प्राचार सुन कर कोई भितु ऐसा विचार करे कि, मैं थोड़े समय के लिये वस्त्र मांग लूं और फिर दूसरे गांव से लौटने पर उसे वापिस दंगा तो वह नहीं लेगा तो वह मेरा ही हो जायगा-- इसमें उसको दोष लगता है। इसलिये वह ऐसा न करे । [१५] - भिन्नु वर्णयुक्त वस्त्रको विवर्ण न करे और विवर्ण को वर्णयुक्त न करे; दूसरा प्राप्त करने की इच्छा से अपना वस्त्र दूसरों को न दे दे, फिर लोटाने के लिये दूसरे से वस्त्र न ले; उसका बदला न करे, अपना वस्त्र देने की इच्छा से दूसरों से ऐसा न कहे कि, 'तुमको यह वस्त्र चाहिये ?' दूसरों को अच्छा न लगता हो तो मजबूत कपड़े फाड़ न फेंके। मार्ग में कोई लुटेरा मिल जाय तो उससे अपने वस्त्र बचाने के लिये भिक्षु उन्मार्ग पर न चला जावे, अमुक मार्ग पर लुटेरे बसते हैं ऐसा जानकर दूसरे मार्ग न चला जावे, सामने श्राकर वे मांगे तो उन्हें दे न डाले; परन्तु-२ रे खण्ड के ३ रे अध्य. के सूत्र १३१, पृष्ट १८ के अनुसार करे। [१५१ ] भितु या भिक्षुणी के प्राचार की यही सापूर्णता है।.......'भाषा' अध्ययन के अन्त-पृष्ट १०४ के अनुसार। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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