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प्राचारांग सूत्र
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____ इसी प्रकार जो वस्त्र गृहस्थने भिन्तु के लिये खरीदा हो, धोया हो, रंगा हो, सुगंधी पदार्थ और उकाले में मसलकर साफ किया हो, धूप से सुवासित किया हो तो उसको जब तक दूसरों ने अपना समझ कर काम में न लिया हो तब तक वह न ले । परन्तु दूसरों ने अपना समझ कर उसको काम में लिया हो तो वह ले ले। [१४४]
भितु बहुत मूल्य के या दर्शनीय वस्त्र मिले तो भी न ले। [१४५]
उपरोक्त दोष टाल कर, भित्तु नीचे के चार नियमों में से किसी एक नियम के अनुसार वस्त्र मांगे
१ ऊनी, सूती आदि में से किसी एक तरह का निश्चित करके उसी को खुद मांगे या कोई दे तो ले ले।
२ अपनी जरूरत का वस्त्र गृहस्थ के यहां देखकर मांगे या दे तो ले ले ।
३ गृहस्थ जिस वस्त्र को भीतर या ऊपर पहिनकर काम में ले चुका हो, उसी को मांगे या दे तो ले ले ।
४ फैंक देने योग्य, जिसको कोई भिखारी या याचक लेना न चाहे ऐसा ही वस्त्र मांगे या दे तो ले ले ।
इन चारों में से एक नियम के अनुसार चलने वाला ऐसा कभी न समझे कि मैंने ही सच्चा नियम लिया है और दूसरे सब ने झूठा (आगे खण्ड २ रे के अ. १ ले के सूत्र ६३, पृष्ट ८३ के अनुसार)।
. इन नियमों के अनुसार वस्त्र मांगते समय 'भिक्षु को गृहस्थ यदि ऐसा कहे कि, 'तुम महिने के बाद या दस, पांच दिन बाद या कल या परसों प्रायो, मैं तुमको वस्त्र दूंगा;' तो भिनु उसे कहे कि, 'हे आयुष्मान् ! मुझे यह स्वीकार नहीं है । इस हिये तुम्हें
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