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भाषा
- भिक्षु उत्तम रूप देखकर उनको वैसा ही कहे । जैसे, तेजस्वी श्रादि । संक्षेप में, जिसके कहने पर सामने वाला मनुष्य नाराज न हो, ऐसी भाषा जान कर बोले ।
भिक्षु कोट, किला, घर श्रादिको देखकर ऐसा न कहे कि यह सुन्दर बनाया है या कल्याणकारी है। परन्तु जरूरत पड़ने पर ऐसा कहे कि, यह हिंसापूर्वक बांधा गया है, दोषपूर्वक बांधा गया है, प्रयत्नपूर्वक · बांधा गया है । अथवा दर्शनीय को दर्शनीय और बेडोल को बेडोल कहे । [१३६ ]
इसी प्रकार तैयार किये हुए आहार-पानी के सम्बन्ध में समझे। [१३७ ]
भिन्तु किसी जवान और पुष्ट प्राणी-पशु-पक्षी को देखकर ऐसा न कहे कि, यह हृष्टपुष्ट, चरबी युक्त, गोलमटोल, काटने योग्य या पकाने योग्य है परन्तु जरूरत पड़ने पर ऐसा कहे कि इसका शरीर भरा हुआ है, इसका शरीर मजबूत है, यह मांस से भरा हुआ है अथवा यह पूर्ण अंग वाला है।
भिक्षु गाय, बैल आदि को देखकर ऐसा न कहे कि यह दोहने योग्य है, फिराने योग्य है, या गाडी में जोतने योग्य है पर ऐसा कहे कि यह गाय दूध देने वाली है, जवान है और बैल बडा या छोटा है।
भितु बाग, पर्यंत या वन में बड़े पेड़ श्रादि देखकर ऐसा न कहे कि, यह महल बनाने के काम के हैं, दरवाजे बनाने के काम के हैं या घर, अर्गला, हल, गाड़ी आदि बनाने के काम के हैं। पर ऐसा कहे कि, योग्य जाति के हैं, ऊंचे हैं, मोटे हैं, अनेक शाखा वाले हैं, बेडोल या दर्शनीय है।
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