Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Jain Shwetambar Conference Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 80
________________ भिक्षा कैसा आहार ले-कैसा न ले ? गृहस्थ जिस पात्र में या हाथ में आहार देने के लिये लाया हो वह बारीक जन्तु, बीज या वनस्पति श्रादि सजीव वस्तु से मिश्रित या सजीव पानी से गीला हो, अथवा उस पर सजीव धूल पड़ी हुई हो तो उसको दोषित जानकर भिन्नु न ले। यदि भुल से ऐसा आहार लेने में आ जावे तो उसको लेकर एकान्त स्थान में, वाड़े में अथवा स्थानक में जावे और निर्जीव स्थान पर बैठ कर उस श्राहार में से जीवजन्तु वाला भाग अलग कर दे तथा जीवजन्तु बीनकर अलग निकाल दे, बाकी का श्राहार संयमपूर्वक खा-पी ले और यदि वह खाने-पीने के योग्य न जान पड़े तो उसको एकान्त में ले जाकर जली हुई. जमीन पर या हड्डी, कचरे, छिलके आदि के घूरे पर देख भाल कर संयमपूर्वक डाल दे। [१] भिक्षा के समय यदि ऐसा जान पड़े कि कोई धान्य, फल, फली आदि चाकू आदि से या अग्नि से तोडी, कतरी या पकाई न जाने से सारी और सजीव है, और उनकी जगने की शक्ति अभी नष्ट नहीं हुई है तो गृहस्थ के देने पर भी भिन्तु उन वस्तुओं को न ले । पर यदि वे पदार्थ पकाये गये हों, सेके गये हों, तोडे-कतरे गये हों और निर्दोष मालुम पड़े तो ही उनको ले । [२] . पोहे, पुरपुरे, धानी आदि एक ही बार भूने जाने पर सजीव मालुम पड़ते हों तो, उनको भी न ले; पर दो-तीन बार भूने जाने पर पूरी तरह निर्जीव हो गये हो तो ही ले। [३] मुनि कंद, फल, कोंपल, मौर और केले आदि का गर तथा अग्रबीज, शाखाबीज या पर्वबीज आदि वनस्पतियाँ चाकू आदि से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152