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शव्या
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और, गृहस्थ ने अपनी जरूरत के लिये लकड़ी फाड़ा रखी हो और भिक्षु के लिये अधिक लकड़ी फाड़ा कर या खरीद कर या मांग कर आग सुलगावे तो उसको देखकर भिक्षु को तापने की भी इच्छा हो । [४]
और, गृहस्थ के घर रहने पर भितु रात को मलमूत्र त्यागने के लिये गृहस्थ के घर का दरवाजा खोले, और उस समय कोई बैठा हुआ चोर भीतर घुस जाय उस समय साधु यह तो नहीं कह सकता कि, यह चोर घुसा; यह चोर छिपा; यह चोर पाया; यह चोर गया, इसने चोरी की, दूसरों ने चोरी की; इसकी चोरी की, दूसरे की चोरी की; यह चोर है, यह उसका साथी है; इसने मारा या इसने ऐसा किया । इस पर वह गृहस्थ उस तपस्वी भिक्षु पर ही चोरी की शंका करे । इसलिये, पहिले से ही ऐसे मकान में न रहे, भिन्तु को यही उपदेश है। [७५] ___जो मकान घास या भूसे की देरी के पास हो और इस कारण अनेक जीवजन्तु वाला हो तो उसमें भिक्षु न रहे पर यदि बिना जीवजन्तु का हो तो उसमें रहे। [ ७६ ]
मुनि, सराय में, बगीचों में बने हुए विश्राम घरों में, और मठों आदि में जहाँ बारबार साधु आते-जाते हों, न रहे । [ ७७ ]
जिन मकानों में जाने-माने या स्वाध्याय की कठिनता हो और जहां चित्त स्थिर न रह सकता हो तो भिक्षु वहां न रहे । जैसे, जो मकान गृहस्थ, श्राग और पानी वाला हो; जहां जाने का रास्ता गृहस्थ के घर के बीच में से होकर हो; जहां घर के लोग आपस में लड़ते-भागड़ते हों; या आपस में शरीर को तेल से मलते हों, या सुगंधित पदार्थ लगाते हों, आपस में स्नान करते-कराते हों, नग्न
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