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विहार
नाव में कैसे जावे ?
मार्ग में इतना पानी हो कि नाव द्वारा ही सकता हो तो भिक्षु अपने लिये खरीदी हुई, मांग
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दल बदल की हुई, जमीन पर से पानी में लाई से जमीन पर लाई हुई, भरी हुई, खाली कराई हुई, कीचड़ में से बाहर निकाली हुई नाव में कदापि न बैठे; परन्तु यदि नाव को गृहस्थों ने अपने लिये पार जाने को तैयार कराई हो तो उस नाव को वैसी ही जान कर भिन्तु उन गृहस्थों की अनुमति लेने के बाद एकान्त में चला जावे, और अपने वस्त्र, पात्र आदिको देखभाल कर तथा उनको एक ओर रखकर सिर से पैर तक शरीर को पोंछ कर साफ करे, फिर ( उस पार पहुंचने तक ) आहार- पानी का त्याग ( प्रत्याख्यान ) करके एक पैर पानी में एक ऊपर रखते हुए सावधानी से नाव पर चढ़े. (११८)
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नाव पर चढ़कर आगे न बैठे, पीछे भी न बैठे और बीच में भी न बैठे । नाव की बाजु पकड़कर, अंगुली बताकर, ऊंचा-नीचा होकर कुछ न करे | यदि नाववाला आकर उससे कहे कि, 'हे आयुष्मान् ! तू इस नाव को इधर खींच या धकेल, इस वस्तु को उस में डाल या रस्सा पकड़कर खींच, तो वह उस तरफ ध्यान न दे । यदि वह वहे कि, 'तुझ से इतना न हो सकता हो तो नाव में से रस्सा निकाल कर दे दे जिससे हम खींच ले; तो भी वह ऐसा न करे । यदि वह कहे कि, 'तू डांड, बल्ली या बांस लेकर नाव को भी वह कुछ न करे । यदि वह कहे कि, 'तू नाव में पानी को हाथ, पैर, बर्तन या पात्र से न करे । वह कहे कि नाव के इस छे
तो
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या वस्त्र, मिट्टी, कमलपत्र या कुरुविंद घास से बन्द कर रख;' तो भी
पार जाना हो
कर ली हुई,
हुई, पानी में
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चला, '
भराने वाले
उलीच डाल;' तो भी वह कुछ को तेरे हाथ, पैर श्रादि से
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