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शख्या
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उस मकान में दूसरे रह चुके हों तो उसको देख भाल कर, झाड़बुहार कर उसमें रहे ।
जिस मकान को गहस्थ ने भिन्नु के लिये, चटाइयों या बांस की पिंचियों से ढकवाया हो, लिपाया हो, धुलाया हो, घिसा कर साफ़ कराया हो, ठीक कराया हो धूप श्रादि से वासित कराया हो और यदि उसमें पहिले दूसरे न रहे हों तो वह उसमें न रहे पर यदि दूसरे उसमें रह चुके हों तो वह देख भाल कर, झाड़ बुहार कर उसमें रहे । [ ६४] .
जिस मकान में गृहस्थ भिन्नु के लिये छोटे दरवाजों बड़े या बड़े दरवाजों को छोटे कराये हों उसके भीतर या बाहर पानी से पैदा हुए कंदमूल, फल-फूल, वनस्पति को एक स्थान से दूसरे पर ले गया हो या बिलकुल नष्ट कर दिया हो, और उसके पाट, नसैनी श्रादि इधर-उधर ले गया हो या निकाल लिया हो, तो भितु उसमें जबतक कि दूसरे न रह चुके हों न रहे । [६५]
भिन्तु मकान के ऊपरी और ऊंचे भाग में बिना कोई खास कारण के न रहे । यदि रहना पडे तो वहाँ हाथमुँह आदि न धोये और वहाँ से मलमूत्र आदि शौच क्रिया भी न करे क्योंकि ऐसा करने में गिर कर हाथपैर में लगना और जीवजन्तु की हिंसा होना संभव है। [६६]
भिक्षु स्त्री, बालक, पशु और उनके प्राहार-पानी की प्रवृत्ति वाले गृहस्थ के घर में न रहे । इसका कारण यह कि उसमें ये महादोष होना संभव हैं; जैसे, वहाँ भिक्षु को (अयोग्य आहारपानी से) सूजन, दस्त, उल्टी आदि रोग हो जावे तो फिर गृहस्थ उस पर दया करके संभव है उसके शरीर को तेल, घी मक्खन या चरबी
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