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भिक्षा
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किसी गांव में वृद्धावस्था के कारण स्थिरवास करने वाले (समाणा) या मास-मास रहने वाले (वसमाणा) भिक्षुक, गांव-गांव फिरने वाले भिक्षुक को ऐसा कहे कि, यह गांव बहुत छोटा है अथवा बड़ा होने पर भी सूतक आदि के कारण अनेक घर भिक्षा के लिये बन्द हैं, इस लिये तुम दूसरे गांव जाओ। तब भिन्तु उस गांव में भिक्षा के लिये न जा कर दूसरे गांव चला जावे। [२३]
गृहस्थ के घर भिक्षा के लिये जाने पर ऐसा जान पडे कि यहां मांस-मछली आदि का कोई भोज हो रहा है और उसके लिये वस्तुएँ ली जा रही हैं, मार्ग में अनेक जीवजन्तु, बीज और पानी पड़ा हुआ है और वहां श्रमण, ब्राह्मण आदि याचकों की भीड़ लगी हुई है या होने वाली है और इस कारण वहां उसका जाना प्राना वाचन और मनन निर्विघ्नरूप से नहीं हो सकता तो वह वहां भिक्षा के लिये न जावे। [२२]
भोज
भिक्षु यह जान कर कि अमुक स्थान पर भोज (संखडि) है, दो कोस से बाहर उसकी आशा रखकर भिता के लिये न जावे परन्तु पूर्व दिशा में भोज हो तो पश्चिम में चला जावे; पश्चिम में हो तो पूर्व में चला जावे। इसी प्रकार उत्तर और दक्षिण दिशा के लिये भी करे । संक्षेप में, गांव, नगर या किसी भी स्थान में भोज हो तो वहां न जावे । इसका कारण यह कि भोज में उसको विविध दोष युक्त भोजन ही मिलेगा; अलग अलग घरसे थोड़ा थोड़ा इकट्ठा किया हुआ भोजन नहीं। और वह गृहस्थ भिक्षु के कारण छोटे दरवाजे वाले स्थान को बड़े दरवाजे वाला करेगा या बड़े दरवाजे वाले
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