Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Jain Shwetambar Conference Mumbai

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Page 86
________________ भिक्षा [ ७६ ," है तो उसको दोष लगता है । इस लिये ऐसा न करके, उस श्राहार को दूसरे श्रमणब्राह्मणों के पास ले जाकर वह कहे कि, 'यह आहार सबके लिये दिया गया है, इस लिये सब मिलकर बांट लो । ' तब उनमें से कोई ऐसा कहे कि, ' हे आयुष्मान् ! तू ही सबको बांट दे इस पर वह प्रहार बांटते समय अपने हिस्से में अच्छा या अधिक आहार न रखे, पर लोलुपता को त्याग कर शांति से सब को बांट दे । परन्तु बांटते समय कोई ऐसा कहे कि, ' हे आयुष्मान् ! तू मत बांट हम सब मिलकर खावेंगे। तब वह उसके साथ आहार खाते समय अधिक या अच्छा न खाकर शांति से समान खावे । [ २९ ] आहार मुनि आहार लाने के बाद, यदि उसमें से अच्छा अच्छा खाकर बाकी का डाल दे तो उसको दोष लगता है । इस लिये ऐसा न करके अच्छा-बुरा सब खा जावे, बुरा छोड़े नहीं । ऐसा ही पानी के सम्बन्ध में समझे। मुनि आवश्यकता से अधिक भोजन यदि ले वे और पास में दूसरे समानधर्मी मुनि रहते हों तो उनको वह अधिक आहार बताये बिना या उनकी श्रावश्यकता के बिना दे डाले तो उसको दोष लगता है वे भी उस देनेवाले को कह दें कि कि, ' हे श्रायुष्यान् ! जितना आहार हमें लगेगा 1 उतना लेंगे; सारा लगेगा तो सारा लेंगे ।' [ ५२-५४ ] यदि आहार दूसरों को देने के तो उसकी आज्ञा के बिना न ले । हो तो ले ले। [५] लिये बाहर निकाल रखा हो पर यदि उसने श्राज्ञा दे दी सब मुनियों के लिये इकट्ठा आहार ले आने के बाद वह मुनि उन सबसे पूछे बिना, अपनी इच्छा के अनुसार ही अपने परिचितों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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