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भिक्षा
कैसा पानी ले - कैसा न ले १
भिक्षु, आटा ( वर्तन, हाथ आदि ) धोया हुआ, तिल्ली धोया हुआ चावल धोया हुआ या ऐसा ही पानी, ताजा धोया हुआ, जिसका स्वाद न फिरा हो, परिणाम में अन्तर न पडा हो, निर्जीव न हुआ हो तो सदोष जानकर न ले परन्तु जिसको धोए बहुत देर होने से उसका स्वाद बदलने से बिलकुल निर्जीव हो गया हो तो उस पानी को निर्जीव समझकर ले ।
[ ८
भितु तिल्ली, चावल और जौ का ( धोया हुआ ) पानी, मांड ( ओसामन ), छाछ का नितार, गरम या ऐसा ही निर्जीव पानी देख कर उसके मालिक से मांगे, यदि वह खुद लेने का कहे तो खुद
।
निर्जीव पानी
जीवजन्तु
ही ले ले अथवा वही देता हो तो ले ले चाली जमीन पर रक्खा हो, अथवा गृहस्थ उसको सजीव पानी या मिट्टी के बर्तन से देने लगे या थोड़ा ठंडा पानी मिला कर देने लगे तो वह उसको सदोष समझ कर न ले । [ ४१-४२ ]
ग्राम, केरी, बिजोरा, दाख, अनार, खजूर, नारियल, केला, बैर श्रवला, इमली श्रादि का पना बीज आदि से युक्त हो अथवा उसको गृहस्थ छान-छून कर दे तो भिक्षु सदोष समझ कर न ले । [ ४३ ] सात पिंडैषणाएँ और पानैषणाएँ
( श्राहार- पानी की मर्यादा विधि )
१. बिना भरे हुए ( खाली, सूखे ) हाथ और पात्र से दिया हुआ निर्जीव आहार स्वयं मांगकर या दूसरे के देने पर ग्रहण करे २. भरे हुए हाथ और पात्र से दिया हुआ निर्जीव आहार ही ले ।
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