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श्राचारांग सूत्र
न सोचे कि अभी तो उसको तैयार करने दो पर लेते समय मना कर दूंगा । और मना करने पर भी गृहस्थ श्राहार-पानी तैयार करके देने लगे तो उसे कदापि न ले [१०]
मितु, ऐसा समझकर कि अमुक स्थान पर विवाह-मृत्यु के कारण भोज है, और वहाँ अवश्य ही भोज हैं, ऐसा निश्चय करके भिक्षा के लिये वही उत्सुकता से दौड़ पड़े तो वह दोष का भागी है । परन्तु योग्य काल में अलग अलग घर से थोड़ा थोड़ा निर्दोष श्राहार वह मांग लावे । [१६]
गृहस्थ के घर भिक्षा मांगने पर आहार के निर्दोष होने में शंका हो तो उसे भिन्नु स्वीकार न करे । [१] ... गृहस्थ के घर अनेक वस्तुएँ तली जा रही हों तो जल्दी जल्दी जा कर उनको न मांगे, किसी बीमार मुनि के लिये जाना हो अलग बात है । [११] .
किसी गृहस्थ के घर आहार में से प्रारम्भ में देव आदि का अग्रपिंड अलग निकाल दिया जाता है । उस अग्रपिंड को निकालते या देवमंदिर श्रादि में चारों तरफ रखा जाता देख कर, उसको पहिले खाया या लिया हो तो श्रमण ब्राह्यण उस तरफ जल्दी जल्दी जाते हैं । उनको देखकर भितु भी जल्दी जल्दी वहाँ जावे तो तो उसको दोष लगता है । [२५]
यदि कोई गृहस्थ (अपने घर श्रमण ब्राह्मण श्रादि को भिक्षा के लिये खड़ा देख कर) आहार मुनि को दे और कहे कि, ' यह
आहार मैंने तुम सबको जो यहाँ खड़े हो, दिया है । तुम सब मिल कर इसे आपस में बांट लो । इस पर वह मुनि यदि मन में सोचे कि, 'यह सब श्राहार तो मुझ अकेले के लिये ही
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