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प्राचारांग सूत्र
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कतरी होने से निर्जीव होगई हो तो ही ले । इसी प्रकार उंबरी, बड, पीपल, पीपली आदि के चूर्ण कच्चे या कम पिसे हुए, सजीव हों तो न ले। अधपकी हुई शाकभाजी, या सड़ी हुई शहद, मद्य, धी, खोल, आदि वस्तुएँ पुरानी हो जाने के कारण उनमें जीवजन्तु हों तो न ले। अनेक प्रकार के फल, कंद श्रादि चाकू से कतरे हुए निर्जीव हों तो ही ले । इसी प्रकार अन्न के दाने, दाने वाली रोटी, चावल, चावल का श्राटा, तिल्ली, तिल्ली का चूरा और तिलपापडी आदि निर्जीव न हो तो न ले। [४]
भिनु या भिक्षुणी भिता लेते समय गृहस्थ के घर किसी को जीमते देख कर उससे कहे कि, 'हे श्रायुष्मान् ! इस भोजन में से . मुझे कुछ दो।' यह सुन कर वह अपने हाथ बर्तन या कड़छी ठंडे
सजीव पानी से अथवा ठंढा हो जाने पर सजीव हुए गरम पानी से धोने लगे तो भिक्षु को कहना अहिये कि, 'हाथ या बर्तन को सजीव पानी से धोए बिना ही तुमको जो देना हो. दो।' इतने पर भी वह हाथ श्रादि धोकर ही देने लगे तो भिन्तु उसको सजीव और सदोष मान कर न ले। इसी प्रकार यदि गृहस्थ ने भिक्षु को भिक्षा देने के लिये ही हाथ धोये न हों पर यों ही वे गीले हों अथवा मिट्टी या अन्य सजीव वस्तु से वे भरे हुए हों तो भी ऐसे हाथों से दिया जाने वाला अाहार वह च ले। परन्तु यदि उसके हाथ ऐसी किसी चीज़ से भरे हुए न हों तो वह निर्जीव और निर्दोष आहार को ले ले । [३३]
पोहे, ठिरूं, चावल आदि को गृहस्थ ने जीवजन्तु, बीज या वनस्पति जैसी सजीव वस्तु लगी हुई शिला पर बांटा हो, बांटता हो या बांटने वाला हो; अथवा हवा में उनको उफना हो, उफनता हो
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