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भगवान महावीर का तप
काम में लाने पड़े थे। वहां के लोग भी उनको बहुत मारते, खाने को रूखा भोजन देते और कुत्ते काटते थे। कुछ लोग उन कुत्तों को रोकते थे तो कुछ लोग कुत्तों को उन पर छुछाकर कटवाते थे। कुत्ते काट न खावें इस लिये दूसरे श्रमण हाथ में लकड़ी लेकर फिरते थे। कितनी ही बार कुत्ते काटते और भगवान की मांस पेशियों को खींच डालते थे । इतने पर भी ऐसे दुर्गम लाद प्रदेश में हिंसा का त्याग करके और शरीर की ममता छोड़ कर वे अनगार भगवान सब संकटों को समभाव से सहन करते और उन्होंने संग्राम में आगे रहने वाले विजयी हाथी के समान इन संकटों पर जय प्राप्त की । अनेक बार लाढ़ प्रदेश में बहुत दूर चले जाने पर भी गांव ही न आता; कई बार गांव के पास आते . ही लोग भगवान को बाहर निकाल देते और मार कर दूर कर देते थे; कई बार वे भगवान के शरीर पर बैठ कर उनका मांस काट लेते थे; कई बार उन पर धूल फेंकी जाती थी, कई बार उनको ऊपर से नीचे डाल दिया जाता था; तो कभी उनको आसन पर से धकेल दिया जाता था । [४१-५३]
दीक्षा लेने के पहिले भी भगवान् ने दो वर्ष से अधिक समय से ठंडा पानी पीना छोड दिया था। पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, काई, वनस्पति और बल जीव सचित्त हैं ऐसा जान कर भगवान उनको बचा कर विहार करते थे । स्थावर जीव सयोनि में प्राते हैं और ब्रस जीव स्थावर योनि में जाते हैं, अथवा सब योनियों के बाल जीव अपने अपने कर्मों के अनुसार उन उन योनियों में भटकते रहते हैं, ऐसा समझ कर भगवान ने यह निश्चित किया कि उपाधि वाले बाल जीव सदा बन्धन को प्राप्त होते हैं। फिर भगवान ने सब प्रकार से कर्भका स्वरूप जान कर पाप का त्याग किया [११- १५ ]
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