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चौथा अध्ययन
--(6)सम्यक्त्व
जो अरिहंत पहिले हो गये हैं, वर्तमान में हैं और भविष्य में होंगे, उन सबने ऐसा कहा है कि किसी भी जीव की हिंसा नहीं करना चाहिये, उस पर सख्ती नहीं करना चाहिये, उसे गुलाम या नौकर बनाकर उस पर बलात्कार नहीं करना चाहिये या उसे परिताप देना अथवा मारना नहीं चाहिये। यह धर्म शुद्ध है, नित्य है, शाश्वत है और लोक के स्वरूप को समझ कर ज्ञानी पुरुषोंने गृहस्थ और त्यागी सबके लिये कहा है। यही सत्य है, और जिन प्रवचन में इसी प्रकार कहा है। [ १२६]
परन्तु विभिन्न वाओं के प्रवर्तक कितने ही श्रमण-ब्राह्मण ऐसा कहते हैं कि, " हमारे देखने, जानने सुनने और मानने के अनुसार और सब दिशाओं को खोजने के बाद हम कहते हैं कि सब जीवों की हिंसा करने और जबरदस्ती से उनसे काम लेने आदि में कोई दोष नहीं है । " परन्तु आर्यपुरुष कहते हैं कि उनका ऐसा कहना अनार्य वचन है जो ठीक नहीं है। 'सब प्राणियों की हिंसा नहीं करना चाहिये, उनको परिताप नहीं देना चाहिये, नहीं मारना चाहिये, उनको गुलाम या नौकर बना कर उन पर बलात्कार नहीं करना चाहिये।' यही आर्यवचन है ।
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