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छठा अध्ययन
और ये जीव एक लोक के इस महाभय को
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( १ )
जिस प्रकार पत्तों से ढके हुए तालाब में रहने वाला कछुआ सिर उठा कर देखने पर भी कुछ नहीं देख सकता और जिस प्रकार दुःख उठाने पर भी वृक्ष अपना स्थान नहीं छोड़ सकते, उसी प्रकार रूप आदि में आसक्त जीव अनेक कुलों में उत्पन्न होकर तृष्णा के कारण तड़फड़ते रहते हैं पर मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकते। उन्हें कंठमाल, कोढ, क्षय, अपस्मार, नेत्र रोग, जड़ता, डूंडापन खूंध निकल आना, उदररोग, मूत्र रोग, सूजन, भस्मक, कंप, पीठ सर्पिणी, हाथीपगा और मधुमेह इन सोलह में से कोई न कोई रोग होता ही है। दूसरे अनेक प्रकार के रोग और दुःख भी वे भोगते हैं ।
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कर्मनाश
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उन्हें जन्म-मरण तो अवश्य ही प्राप्त होता है । यदि वे देव भी हों तो भी उनको जन्म-मरण उपपात और च्यवन के रूप में होता ही है । प्रत्येक को अपने कर्मों के फल अवश्य ही भोगने पड़ते हैं । उन कर्मों के कारण उनको अन्धापन मिलता है या उन्हें अन्धकार में रहना पड़ता है । इस प्रकार उनको बारम्बार छोटे-बड़े दुःख भोगने ही पड़ते हैं ।
दूसरे को भी तो सताते रहते हैं । इस देखो । ये सब जीव अति दुःखी होते हैं ।
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