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नौवां अध्ययन -(•)—
भगवान महावीर का तप
[ उपधान ]
श्री सुधर्मास्वामी कहने लगेहे आयुष्मान् जंबु ! श्री महावीर भगवान की तपश्चर्या का वर्णन जैसा मैं ने सुना है वैसा ही तुझे कहता हूँ । उन श्रमण भगवान ने प्रयत्नशील हो कर संसार के दुःखों को समझकर प्रव्रज्या स्वीकार की और उसी दिन हेमन्त ऋतु की सर्दी में ही बाहर निकल पड़े ! उस कड़कड़ाती सर्दी में वस्त्र से शरीर को न ढकने का उनका संकल्प दृढ़ था और जीवनपर्यंत कठिन से कठिन कष्टों पर विजय पाने वाले भगवान के लिये यही उचित था । [ १-२ ]
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अरण्य में विचरने वाले भगवान को छोटे-बड़े अनेक जंतुोंने चार महिने तक बहुत दुःख दिये और इनका मांस लोही चूसा । [३] तेरह महिने तक भगवान ने वस्त्र को कन्धे पर ही रख छोडा । फिर दूसरे वर्ष शिशिर ऋतु के प्राधी बीत जाने पर उसको छोड़ कर भगवान सम्पूर्ण 'अचेलक -रहित हुए । [ ४ २२ ] वस्त्र न होने पर भी और सख्त सर्दी में वे अपने हाथों को लम्बे रखकर ध्यान करते । सर्दी के कारण उन्होंने किसी भी दिन हाथ बगल में नहीं डाले । कभी कभी वे सर्दी के दिनों में छाया में बैठकर ही ध्यान करते तो गर्मी के दिनों में धूप में बैठ कर ध्यान करते । [ २२, १६ – ७ ]
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