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आठवाँ अध्ययन --(०)विमोह
आर्य पुरुषों द्वारा समभाव से उपदेश दिया हुआ धर्म सुनकर और समझ कर, बोध को प्राप्त होने पर अनेक बुद्धिमान योग्य अवस्था में ही संयम धर्म को स्वीकार करते हैं। किसी भी प्रकार की आकांक्षा से रहित वे संयमी किसी की हिंसा नहीं करते, किसी प्रकार का परिग्रह नहीं रखते और न कोई पाप ही करते हैं। वे सच्चे अग्रंथ हैं। [२०७]
बुद्धिमान भिन्तु ज्ञानियों के पास से जीवों के जन्म और मरण का ज्ञान प्राप्त करके संयम में तत्पर बने । शरीर श्राहार से बढ़ता और दुःखों से नष्ट हो जाता है। वृद्धावस्था में शक्तियां कमजोर हो जाने पर कितने ही मनुष्य संयम धर्म का पालन करने में असमर्थ हो जाते हैं। इस लिये, बुद्धिमान भिन्तु समय रहते ही जाग्रत हो कर, दुःख पड़ने पर भी प्रयत्नशील और आकांक्षाहीन बन कर संयमोन्मुख बने और दया धर्मका पालन करे। जो भिन्तु कर्मों का नाश करने वाले शस्त्ररूप संयम को बराबर समझता है और पालता है, वही कालज्ञ, बलज्ञ, मात्रज्ञ, क्षणज्ञ, विनयज्ञ और समयज्ञ है। [२०८-२०६]
कितने ही लोगों को प्राचार का कुछ ज्ञान नहीं होता । हिंसा से निवृत्त न होने वाले उनको जीवों को हनने-हनाने में अथवा
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