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लोकसार namumaninoneww w w............. ANNN ने ही सत्य और निःशंक वस्तु (सिद्धान्त) बतलाई है,' असहिष्णु नहीं होना चाहिये । कारण यह कि जिनप्रवचन को सत्य मानने वाले, श्रद्धावान् समझे हुए और बराबर प्रव्रज्या को पालने वाले मुमुक्षुओं को कोई बार श्रात्मप्राप्ति हो जाती है, तो कोई बार जिन प्रवचन को सत्य मानने वाले को आत्मप्राप्ति नहीं होती। उसी प्रकार कितने ही ऐसे भी होते हैं जिनको जिन प्रवचन सत्य नहीं जान पड़ने पर भी आत्मप्राप्ति होती है, तो कितने ही ऐसे भी होते हैं जिनको जिन प्रवचन सत्य नहीं जान पड़ता और आत्मप्राप्ति भी नहीं होती। [ १६१, ११३]
इस प्रकार प्रात्मप्राप्ति होने की विचित्रता समझ वर समझदार मनुष्य अज्ञानी को कहे कि, "भाई! तू ही तेरी आत्मा के स्वरूप का विचार कर, ऐसा करने से सब सम्बन्धों का नाश हो जावेगा। खास बात तो यह है कि मनुष्य प्रयत्नशील है या नहीं ? " कारण यह कि कितने ही जिनाज्ञा के विराधक होने पर भी प्रयत्नशील होते हैं और कितने ही जिनाज्ञा के श्राराधक होने पर भी प्रयत्नशील नहीं होते हैं। [ १६३, १६६ ]
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