Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Jain Shwetambar Conference Mumbai

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Page 35
________________ २८] अाचारांग सूत्र ऐसा कहने वाले प्रत्येक श्रमण-ब्राह्मण को बुलाकर पूछो कि, 'भाई, तुमको सुख दुःखरूप है या दुःख दुःखरूप ? ' याद वे सत्य बोलें तो यही कहेंगे कि, 'हमको दुःख ही दुःखरूप है।' फिर उनसे कहना चाहिये कि, 'तुमको दुःख जैसे दुःखरूप है वैसे ही सब जीवों को भी दुःख महा भय का कारण और अशांति कारक है।' संसार में बुद्धिमान मनुष्य इन अधर्मियों की उपेक्षा करते हैं। धर्भज्ञ और सरल मनुष्य शरीर की चिन्ता किये बिना, हिंसा का त्याग करके कर्मों का नाश करते हैं। दुःखमात्र प्रारम्भसकाम प्रवृत्ति और उससे होने वाली हिंसा-से होता है, ऐसा जान कर वे ऐसा करते हैं। दुःख के स्वरूप को समझने में कुशल वे मनुष्य कर्भ का स्वरूप बराबर समझ कर लोगों को सच्चा ज्ञान दे सकते हैं [ १३३-१३५] संसार में अनेक लोगों को पापकर्म करने की आदत ही होती है, इसके परिणाम में वे अनेक प्रकार के दुःख भोगते हैं। क्रूर कर्म करने वाले वे अनेक वेदना उठाते हैं। जो ऐसे कर्म नहीं करते वे ऐसी वेदना भी नहीं उठाते, ऐसा ज्ञानी कहते हैं। [ १३२ ] ___ अज्ञानी और अन्धकार में भटकने वाले मनुष्य को जिन की अाज्ञा का लाभ नहीं मिलता। जिस मनुष्य में पूर्व में भोगे हुए भोगों की कामना नष्ट हो गई है और जो (भविष्य के) परलोक के भोगों की कामना नहीं रखता, उसको वर्तमान भोगों की कामना क्यों होगी? ऐसे शमयुक्त. आत्म-कल्याण में परायण, सदा प्रयत्नशील, शुभाशुभ के जानकार, पापकर्मों से निवृत्त, लोक (संसार) को बराबर समझ कर उसके प्रति तटस्थ रहने वाले और सब विषयों में सत्य पर दृढ़ रहने वाले वीरों को ही हम ज्ञान देंगे। ज्ञानी और बुद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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