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अाचारांग सूत्र
जो उत्तम है, वह दूर है; और जो दूर है वह उत्तम है। हे पुरुष ! दू सत्य को पहिचान ले । सत्य की साधना करने वाला, प्रयत्नशील, स्वहित में तत्पर, तथा धर्म को मानने वाला मेधावी पुरुष ही मृत्यु को पार कर जाता है और अपने श्रेय के दर्शन कर पाता है । कषायों का त्याग करने वाला वह अपने पूर्व कर्मों का नाश कर सकता है। [ ११८ ]
प्रमादी मनुष्य को ही सब प्रकार का भय होता है, अप्रमादी को किसी प्रकार का भय नहीं होता। लोक का दुख जानकर और लोक के संयोग को त्याग कर वीर पुरुष महामार्ग पर बढ़ते हैं। उत्तरोत्तर उपर ही चढ़ने वाले वे, असंयमी जीवन की इच्छा नहीं करते । [१२३]
संसार में रति और अरति दोनों को ही मुमुक्षु त्याग दे। सब प्रकार की हंसी को छोड़कर मन, वचन और काया को संयम में स्थिर रखकर बुद्धिमान विचरे । [ ११७ ]
अपने श्रेय (कल्याण) को साधने में प्रयत्नशील रहने वाला संयमी दुःखों के फेर में आ जाने पर भी न घबराये। वह सोचे कि इस संसार में संयमी मनुष्य ही लोकालोक के प्रपंच से मुक्त हो सकता है। [१२] ___ अमुनि (संसारी) ही सोते होते हैं; मुनि तो हमेशा जागते होते हैं। वे निग्रन्थ शीत और ऊष्ण प्रादि द्वन्द्वों को, त्याग देते हैं, रति
और अरति को सहन करते हैं और कैसे ही कष्ट श्रा पड़ने पर शिथिल नहीं होते। वे हमेशा जागते हैं और वैर से विरत होते हैं।
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