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श्राचारांग सूत्र
दुखी होता है । इसलिये तृष्णा को त्याग दो। कामभोगों के स्वरूप और उनके विकट परिणाम को न समझने वाला कामी अन्त में रोता और पछताता हैं । [८४-१५, १४, १५]
विषय कषायादि में अति मूढ़ मनुष्य सच्ची शांति के मूलरूप धर्म को समझ ही नहीं सकता । इस लिये, वीर भगवान् ने कहा है कि महामोह में जरा भी प्रमाद न करो। हे धीर पुरुष! तू प्राशा और स्वच्छन्दता का त्याग कर। इन दोनों के कारण ही तू भटकता रहता है। सच्ची शांति के स्वरूप और मरण (मृत्यु) का विचार करके तथा शरीर को नाशवान् समझ कर कुशल पुरुष क्यों कर प्रमाद करेगा ? [२४] |
जो मनुष्य ध्रुव वस्तु की इच्छा रखते हैं, वे क्षणिक और दुखरूप भोगजीवन की इच्छा नहीं करते। जन्म और मरण का विचार करके बुद्धिमान् मनुष्य दृढ (ध्रुव) संयममें ही स्थिर रहे
और एक बार संयम के लिये उत्सुक हो जाने पर तो अक्सर जान कर एक मुहूंत भी प्रमाद न करे क्योंकि मत्यु तो श्राने ही वाली है । [८०, १५]
ऐसा जो बारबार कहा गया है, वह संयम की वृद्धि के लिये ही है । [१४]
कुशल मनुष्य काम को निर्मूल करके, सब सांसारिक सम्बन्धों और प्रवृत्तियों से मुक्त होकर प्रबजित होते हैं । वे काम भोगों के स्वरूप को जानते हैं और देखते हैं । वे सब कुछ बराबर समझ कर किसी प्रकार की भी श्राकांक्षा नहीं रखते । [७]
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