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माऊनच
हा पाछो तिर्यंचा गर्भना दुःखने अनुभवे छे. पण जे मुनि कपायरहित अप्रमादी छे तेने शुं लाभ थाय छे. ते बतावे छे. शब्द रुप आचा विगेरेमा जे रागद्वेष थाय छे तेनी उपेक्षा करतो रुजु (सरल) यति थाय छे. एटले खरी रीते जे यति (साधु) छे ते रुजु छे. पण सूत्रम
गृहस्थ तो स्त्री विगेरे पदार्थ ग्रहण करवाथी वक्र छे (स्त्री विगेरेने मेळववा राजी राखवा गृहस्थने कपट करवु पढे छे.) वळी ते ॥४४३॥ 5 सरल साधु गायन निगेरेनो उपेक्षा करतो मरण (मार) नी शंका करे छे. एटले बीजाने मारता (दुःख देतां) डरे छे. तेथी पोते ॥४४३॥
पण मरणथी बचे छे. बळी ते काम (पाप चेष्टाभो) थी अप्रमादी रहे छे. अने जे साधु काम चेष्टाना पापोथी दूर रहे, तेज खरी रीते मन वचन कायाना पापथी उपरत (वचेलो) छे. कोण बचे छे? ते कहे छे. जे वीर छे तेज गुप्त आत्मा छे. अने ते खेदज्ञ छे (एटले बीना जोबोना खेदने जाणे छे तेयी कोइने दुःख देतो नथी ते खेदज्ञ साधु गायन विमेरेना आनंदना विषयोना पर्यव४ (भागो) अनुकुल थतां पोते तेना निमित्तना शस्त्रने पाणीभीने दुःखकारक जाणीने तेमा लीन न थतां ते निपुण साधु निरवद्य अनुष्ठान जे अशस्त्र छे ते करे छे. अने ते संयमना खेदने जाणनारो पर्यव जात शस्त्रना खेदने जाणनारो छे, तेनो सार आ छे के जे| साधु पासे शब्दादि पर्यायो सुंदर के विरुप आवे तो लेवानी के त्यागवानी क्रिया वीजा जीवोने दुःखरुप छे तेम जाणे छे अने ।
मध्यस्थपणुं राखg ते अपीडाकारक होवाथी जे अशस्त्ररुप-संयम छे. ते पोताने अने परने उपकार करनारो छे, एवं जाणे छे. IP आ प्रमाणे, जाणीने शस्त्रने छोडे, अने अशस्त्र (संयम) तेने ग्रहण करे; एटले ज्ञाननुं फळ ए छे के विषयोनः आनंदने
छोडनारों; समभाव राखनारो जीवाने बचावी संयम पाळे छे, (अने जीवो उपर रागद्वेष करे; तो, संयम पाळी शकतो नथी.) । अथवा, गायन विगेरे पर्यायोथी, अथवा गायन विगेरेथी उत्पन्न थयेल रागद्वेषना पर्यायोथीं जे ज्ञानावरणीय विगेरे कर्म द
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