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सूत्रम्
आचा० पछी जो, एदले विवेकवाली बुद्धियी तेने तुं धारण कर. प्रश्न:-क्या पुरुषो वर्धा कर्मोने क्षय करे छे ! उत्तरः-ते कहे थे, १. 'नरे' इत्यादि माणसोज संपूर्ण कर्मक्षय करवाने समर्थ छे, पण बीजी गतिवाळा नहि. तेमां पण वां मनुष्यो मोक्षमा जनारा
ल नथी; पण जेओए अर्चाते, शरीरना संस्कारो (शोभानो) त्याग करवाथी जेमनुं शरीर मरण जेवू छे अर्थात् जेमणे शरीरनो मोह
मुकी तेने पुष्ट कर के शोभाव, ए सपळु त्याग कर्युछे. ( मेघकुमारे जेम वीतराग प्रभुना उपदेशथी आंखो सिवाय शरीरना बीजा भागोनी ममता उतारीने दवा विगेरेनो पण त्याग कर्यो हतो; अथवा आखा शरीरनी चामडी जीवां उतारी; तो पण कोइना उपर 8 कोप न कर्यो; तेवा खंधकमुनि माफक थाय छे.) तेवा साधु सर्व कर्मनो क्षय करे . अथवा अर्चा एटले तेज अने ते पण क्रोध छे, अने तेना कहेवाथी बीजा कषायो पण जाणी लेवा. तेनो अर्थ आ प्रमाणे छे के-जे पुरुषमाथी कषायरुप-अर्चा सर्वथा नष्ट
पामो हे, तेवा अकषायी पुरुषोना आठ कर्म नाश थाय छे. वळी, श्रुतचारित्ररुप-धर्मने जाणनारा ते धर्मविदो छे, ते कुटिलतार1 हित (सरळ) छे. प्रश्न:-तेम हो; पण बीजा साधुए शुं आलंबन लइने ते करचुं ? .
उत्तर:-'आरंभज' विगेरे. सावधक्रिया-अनुष्ठानना आरंभथी थयेलं आरंभज ते, कृत्य दुःखरुप छे, ए, वर्धा पाणीओने प्रत्यक्ष छे. अर्थात् खेती, नोकरी वेपार विगेरे आरंभमा प्रवर्तेलो मनुष्य, शरीर, तथा मननां दुःखने भोगवे छे, ते वाणीथी पण | कहेवाय नहि. (पटल वधुं छे,) ते साक्षात् संपूर्ण देखनारा (केवळज्ञानी) ए कहेलं छे. आ वधु दुःख स्वयं-अनुभवसिद्ध जा
णीने तेभी शरीरशोभारहित (मृतार्चा तथा धर्मविद तथा सरळ बने छे, ए, केवळज्ञानी ओ कहे केले ते बतावे छे. आ प्रमाणे 1 केवळज्ञानीओए कहेलु के. प्रश्न:-केवा पुरुषोए ते कहेलुं छे ? उत्तरः-समत्व-दीयो, (सम्यक्त्व-दर्शीओ) अथवा समस्त देख
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