Book Title: Acharanga Stram Part 03
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 165
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥५८६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षणमा पर्ते छे, क्षणनो अर्थ हिंसा छे, तेथी जेम ते हिंसामा बर्ते छे, तेम जूठ विगेरेमां पण प्रवर्त्ते छे, पण रुप विषयोमा प्रधान दो था ते रुपवा होवाथी (तुर्त तेमां मन दोडतुं होवाथी) लीधुं छे, अने आसन (पाप) द्वारोमां हिंसा मुख्य अने प्रथम होवाथी ते लील छे, अर्थात् अज्ञानी माणस रूप विगेरे माटे धर्मथी भ्रष्ट यइने गर्भ विगेरेनां दुःख भोगवे छे. एम आ जिनेश्वरना मार्गमां कहेल छे, पण जे डाह्या माणसे आ विषय रसने पालुं गर्भादि गमननो हेतु जाणीने पोते धर्मथी भ्रष्ट न थइने हिंसा विगेरे | आसन द्वारथी दूर रहे छे, ते केवो थाय, ते कहे छे. ते एकलोज जीतेन्द्रिय मुनि ऋण जगतुने माननारों बनीने सम्यग्र रीते तेणे | मोक्ष मार्ग पग तळे खुदी नांख्यो छे, एटले ज्ञान दर्शन चारित्र मोक्ष मार्ग संमुख कर्यो छे. तथा बीजी प्रतिमां 'संविद्ध भये' पाठ छे, एटले ते जीतेन्द्रिय सुनिए भय जाण्यो के एटले जे हिंसा विगेरे आस्रवद्वारथी दूर रहे ते मुनिज बुंदेला मोक्ष मार्गवाळो छे. बळी बीजी रीते मुनि होय ते कड़े छे, जे विषय कपायथा पराभव पामेलो छे, हिंसा विगेरे कृत्यमां रक्त छे, तेवो गृहस्थ अथवा पाखंडी जन समूह छे तेने रधिवा रंधावामां अथवा औदेशिक तथा सचित आहार विगेरेमां रक्त छे. तेवानी ( दुर्दशा विचारी) तेनी संगति न करतो, अने तेवा पाममां पोताना आत्माने न जोडतो, अशुभ व्यापार छोडीने, मोक्ष मार्ग जाणनारों मुनि बने छे, लोकने उलटा मार्गे चालेला जोड़ने पोते शुं करे ? ते कहे छे. पूर्वे कला अशुभ हेतुथी जे कर्म बांध्युं छे तेना उपादान कारणो संपूर्ण ज्ञ परिज्ञावडे समजीने प्रत्याख्यान परिज्ञावडे सर्वथा छोडे, केवीरीते छोटे ते कहे छे. 'स' ते कर्म छोडनारो काय वाचा अने मन वडे जीवोनी हिंसा न करे, न मरावे, मारताने भलो न जाणे, बळी पापोना उपादानमां प्रवर्त्तता पोताना आत्माने रोके, अथवा सत्तर प्रकारना संयममा आत्माने जोडे, अथवा आ चार For Private and Personal Use Only सूत्रम् ||५८६ ॥

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