Book Title: Acharanga Stram Part 03
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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आचा०
॥ ५९३ ॥
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अधिक्षेप [fareerr] sedi परस्पर विवाद थतां मारामारीनो पण वखत आवे, आ बधुं गच्छमां रहेलां समुदायमां विचरताने न संभवे, कारण के क्रोध विगेरे थतां गुरु उपदेश आपी बन्नेने शांत राखे, कहुं छे छे
अक्कोसहणणमारणधम्म भंसाण बालसुलभाणं । लाभं मण्णइ धीरो, जहुत्तराणं अभावमि ॥ १ ॥
आक्रोश व मार धर्म भ्रंश विगेरे बालकोने सुलभ छे, आटलं छतां उत्तरना दोषोना अभावे धीर माणस तेमां लाभ माने छे, अर्थात् समुदायमा रहेनारो कोइथी लडे तो गुरु उपदेश आपे के आ मार विगेरेतुं दुःख पण सारुं छे. कारण के पाथी दुर्गतिनो संभव नथी पण जे संघाडाथी जुदो पडी एकलो विचरतो होय तेने फक्त दोपोनोज संभव छे. सामिएहिं संमुजएहिं एगागिओ अ जो विहरे । आयंक पउरयाए छक्काय वहमि आवडइ ॥ १ ॥
पोताना समुदायना साधु योग्य विहार करता होय, तेमने छोडीने जे एकलो विचरे, तेने रोगोनो वधारो यतां छकायना वधमां से पढे छे, (दोषो लगाडे छे)
ratfiree दोस्सा इत्थी साणे तहेव पडिणीए । भिक्खऽवसोहि महवय तम्हा सविइज्जए गमणं ॥२॥
एकला फरनाराने स्त्री कूतरो तथा प्रत्यनीकथी दुःख थवा संभव छे, तथा गोचरीनी अशुद्धि तथा महाव्रतमां पण दोषो लागे माटे बीजा साधु सहित विचर. पण गच्छमां रहेनाराने तो घणा गुणो थाय छे, तेनी निश्राए बीजो बाळ वृद्ध वगेरेनें उद्यत विहारनो स्वीकार थाय, कारण के पोते तरवामां समर्थ होय, ते बीजो अशक्त डुबतो कोइ लाकडाने वळगेलो होय, तेने पण पोते तारे
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सूत्रम्
॥५९३॥

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