Book Title: Acharanga Stram Part 03
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 181
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा ॥६०२॥ तेज वेदविद् छ अथवा आगम जाणनारा गणधर चौद पूर्वी विगेरे मुनिओ अप्रमादवडे शीघ्र अभाव करे छे. इथे अममादी केवी 3 रीतनो होय छे, ते कहे छे. सासुत्रम् से पभूयदंसी पभूयपरिन्नाणे उवसंते समिए सहिए सयाजए, दई विडिवेएइ अ ॥६०॥ प्पाणं किमेस जणो करिस्सइ ?, एस से परमारामो जाओ लोगंमि इस्थीओ, मुणिणा ह एवं पवेइयं, उब्बाहिजमाणे गामघम्मेहिं अवि निब्बलासए अवि ओमोयरियं कुजा अवि उझं ठाणं ठाइजा अवि गामाणुगामं दूइजिजा अवि आहारं वुच्छिदिजा अवि चए इत्थीसु मणं, पुर्व दंडा पच्छा फासा पुढवं फासा पच्छा दंडा, इच्चेए कलहासंगकरा भवंति, पडिलेहाए आगमित्ता आणविज्जा अासेवणाए तिबेमि, से नो काहिए नो पासणिए नो संपसारणिए नो मामए णो कयकिरिए वइगुत्ते अज्झप्पसंखुडे परिवजइ सया पावं एवं मोणं समणुवासिज्जासित्तिबेमि (सू० १५९) ॥ ५-४ ॥ लोकसारे चतुर्थः ॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190