Book Title: Acharanga Stram Part 03
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 182
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ||६०३ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ते साधु प्रमादना विपाक विगेरेनुं अथवा अतीत अनागत वर्त्तमानना कर्मविपाकर्तुं प्रभूत ( पर्नु रहस्य) देखवाना स्वभावनाको होवाथी प्रभूतदर्शी कद्देवाय छे, पण वर्त्तमाननो स्वार्थ देखीने कांइ पण न करे, तथा सत्व [ जीव समूह ] नुं रक्षण करवाना उपायमां पणुं ज्ञान धरावे, अथवा संसार भ्रमण तथा मोक्ष मेळववानां कारण घणी रीते जाणे, माटे 'मभूत परिज्ञानी' कहेवाय छे, अर्थात् संसारतुं जेतुं स्वरूप होय तेनुं बधा जीवोने बतावे छे, 'किंच'- बळी कपायनो उदय न करे, तेथी अथवा इन्द्रिय अने मन ने कबजामा राखवाथी 'उपशांत' छे, तथा पांच समितिवडे अथवा सम्यग् रीते मोक्षमार्ग तरफ चालवाथी समित छे. तथा ज्ञान विगेरेथी सहित छे, तथा सदा यह करवाथी सदायत छे, आ प्रमाणे अप्रमत बनीने गुरु सेवामां रहेतो, पोताना प्रमादथी पूर्वे करेलां अशुभ कृत्योनो अंत करे छे, ते साधु खी विगेरेना अनुकूल परिषद आवतांशुं करे, ते कहे छे. 'दृष्ट्रा' त्रीओने पोताना आ| त्माने उपसर्ग करवाने आवती देखीने विचारे के हुं सम्यग् दृष्टि हुं, तथा पंच महाव्रतनो भार में लीधो छे, शरद ऋतुना चंद्र समान निर्मळ कुलमां में जन्म लीधो छे. हुं अकार्य त्यजवा माटेज तैयार थयो लुं, ते स्त्रीसमूहने देखी विचारे, के आ स्त्रीओवी मारे शुं प्रयोजन स्छे ? में जीववानी आशा त्याग करी छे, आ लोकनुं सुख सर्वथा छोड छे, तेथी ते स्त्री मने शुं उपसर्ग करवानी छे ? मार्कं मन केम चलायमान करशे ? अथवा विषयोनुं सुख दुःख रूपे परिणमवाथी मने आ स्त्रीओ सुख आपवानी के ? अथवा पुत्र कलत्र विगेरे मने काळ झडपशे, अथवा रोगो पीडशे, त्यारे ते केवीरीते बचावी शकशे ? अथवा आ प्रमाणे स्त्रीओना स्वभावने चिंतये ते सूत्रकारण बतावे छे. के. आ खीसमूह रमणता करावे माटे आराम से, तथा परम आराम होवाथी परमाराम छे, ते सुख देखाढनारी स्त्री तल जाणनार ज्ञानी साधुने पण तेनाहास विलास उपांग तथा आंखना कटाक्ष देखढवा विगेरे विचोकवडे ते झुंझवे छे, भा लोकमां For Private and Personal Use Only सूत्रम् ||६०३॥

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